अनुराग लक्ष्य, 5 जून
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
शहर ए बदायूँ का नाम सामने आते ही हर इंसान की अकीदत और मुहब्बत बेसाख्ता जुड़ जाती है, और अकीदत और मुहब्बत वाले आज भी शहर ए बदायूँ को बदायूँ शरीफ के नाम से ही जानते और पहचानते हैं।
आपको बताते चलें कि उसी अकीदत और मुहब्बत वाले शहर बदायूँ की पाकीज़ा सर ज़मीन से एक नाम उभरता है। दुनिया ए अदब जिन्हें हेदायत बदायूंनी के नाम से जानती है और पहचानती है। जिनके मयारी कलाम से आज हिंदुस्तान का गोशा गोशा महक रहा है। जिनके कलाम देश की राजधानी दिल्ली से लेकर मुल्क के बड़े बड़े मुशायरों में अपनी ख़ास जगह बना चुके हैं। आज अनुराग लक्ष्य मुंबई के संवाददाता सलीम बस्तवी अज़ीज़ी ने ऐसे ही एक संजीदा इंसान और बेहद खूबसूरत लब ओ लहजे वाले शायर जनाब,
हेदायत बदायूंनी साहब की एक यादगार ग़ज़ल को आप तमाम हज़रात से रूबरू कराने के लिए अनुराग लक्ष्य परिवार का हिस्सा बनाया ।
1/ किसी से आईना खाने दुआ नहीं करते,
हम अहले दिल तुझे तुझसे जुदा नहीं करते ।
2/ हिकारतों पे भी अब हाथ जब उठाते हैं,
दुआएँ करते हैं हम बददुआ नहीं करते ।
3/ चलन रहा है बहारों में फूल खिलने का,
ख़ेज़ाँ में ग़ुँचा ओ गुल तो खिला नहीं करते ।
4/ मुहब्बतों में यह रुसवाईयाँ तो हैं लेकिन,
सभी के सामने आंसू बहा नहीं करते ।
5/ धड़क रहा है तो फिर कीजे एहतयात ए दिल,
जो टूट जाए तो टुकड़े जुदा नहीं करते ।
6/ मिला न कोई ज़माने में आदमी ऐसा,
जो कह सके कि कभी हम ख़ता नहीं करते ।
7/ समझ सको तो हेदायत को मान लो मेरी,
कभी किसी को किसी से जुदा नहीं करते ।