उन्मुक्त उड़ान मंच पर साप्ताहिक आयोजन में विभिन्न उत्सवों की रौनक 

मंच की अध्यक्षा एवं संस्थापिका डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ के मार्गदर्शन में बैसाखी पर्व से शुरू हुये सप्ताह में अनेक विषयों का समागम हुआ| संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ के विषय प्रवर्तन में 21 रचनाकारों ने विभिन्न घनाक्षरी में अपने स्वर से उत्सव को मनाया| सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’ के विषय निरूपण में ज्ञान दिवस के रूप में डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी के जन्मदिवस को मनाया गया, जिसमें 20 रचनाकारों ने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब के सम्मान में अपनी रचनाएँ प्रेषित की और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया| साप्ताहिक कार्यक्रम की श्रृंखला में समसामयिक विषय ःमानव का समाज में महत्व और अस्तित्व के विषय निरूपण में पूनम सिंह ‘सारंगी’ ने लिखा कि मानव एक सामाजिक प्राणी है। बिना समाज के जीवित रहना असंभव है। मानव के अस्तित्व पर समाज का अस्तित्व है। समाज के अस्तित्व पर ही प्रत्येक व्यक्ति का जीवन निर्भर है। अशोक दोशी ‘दिवाकर’ के अनुसार हर समाज कुछ विचार धाराओं व कुछ स्थायी नीति नियमों व धर्म में बंधा हुआ रहता है, और जो अपने परिवार या देश को छोड़ता है उसे समाज अच्छी नज़रों से नहीं देखता| संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ का मानना है कि समाज एक ऐसा संरचनात्मक तंत्र है जो व्यक्तियों को जोड़ता है। इसका मूल आधार होता है सहयोग, सह अस्तित्व और सामूहिक उत्तरदायित्व। समाज हमें यह सिखाता है कि केवल मैं नहीं, हम का भाव ही जीवन की सफलता और संतुलन का मूल है। फूलचन्द्र विश्वकर्मा ‘भास्कर’ कहते हैं शिक्षा संस्कार और संस्कृति के रथ पर सवार होकर मानव आज सर्वश्रेष्ठता सिद्ध कर रहा है। अपने साथ साथ परिवार और समाज के लिए कार्य कर रहा है। माधुरी शुक्ला लिखती हैं समाज के महत्व और अस्तित्व को समझते हुए, सहयोग और आत्मीयता के साथ, कदम से कदम मिलाकर चलना ही एक विकास पूर्ण, उत्थान की तरफ बढ़ता हुआ समाज कहलाएगा| दिव्या भट्ट ‘स्वयं’ के अनुसार एक समाज में रहकर हम सुरक्षित रह सकते हैं। समाज हमारे लिए सुख दुख साँझा करने का महत्वपूर्ण काम करता है। समाज भावनात्मक संबल प्रदान करता है। सुरेश सरदाना का मानना है कि एक व्यक्ति को समाज से ही अपनी पहचान मिलती है | जिससे उसे आत्म गौरव की भावना का आभास होता है| कुसुम लता ‘तरुषि” के अनुसार अगर एक सफल समाज का निर्माण करना है तो अपने छोटे प्रलोभन छोड़कर एक ईमानदार और जागरूक व्यक्तित्व का निर्माण करना होगा। रंजना बिननी ‘काव्या’ लिखती हैं व्यक्ति समाज के बिना अधूरा होता है और मानव के बिना समाज भी अस्तित्व हीन होता है व्यक्ति के विकास मैं समाज की अहम भूमिका होती है समाज को सशक्त बनाना हमारा कर्तव्य है| अनु तोमर ‘अग्रजा’ के अनुसार समाज ही मानव की विसंगतियों को सुधारने का मौका देता है । मानव समाज के बिना अधूरा है यदि समाज को वह अपना योगदान देता है तभी उसका अस्तित्व भी रहता है अन्यथा वीराने में एड ठूंठ पेड़ की तरह हैं। डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ का मानना है कि समाज के प्रति व्यवहार कुशलता ही मनुष्य के व्यक्तित्व को गरिमामयी बनाता है। उदारता, परोपकारिता, अनुशासन प्रियता, सहयोगी भावना, प्रतिबद्धता सदाचारिता, सद्भावना से ही मनुष्य को समाज में उच्चतम स्थान मिलता है। मनजीभाई कहते हैं कि कुटुंब परिवार की सभ्य संस्कृति से जुड़ी हुई गाथा इतिहास और धरोहर के रूप में अंकित होती रहती है। अनिल राही का मानना है कि जीवन दर्शन में उत्कृष्टता का समावेश करने, दृष्टिकोण में आदर्शवादी मान्यताओं को स्थान दिलाने की अनिवार्यता महत्ता में मनीषी की भूमिका निभाने में समाज की अनिवार्यता को नकार नहीं सकते। नंदा बमराडा ‘सलिला’ लिखती हैं कि समाज में रहकर मानव में सामाजिक, मानवीय गुणों का विकास होता है। नीरजा शर्मा ‘अवनि’ के अनुसार मानव और समाज पूरक है एक दूजे के| समाज , परिवार की तरह हर मनुष्य के जीवन की वह धुरी है जिसके इर्दगिर्द वह हमेशा घूमता रहता है डॉ सरोज का मानना है कि समाज मानव में आत्मवत् सर्व भूतेषु का भाव जगाता है और समाज बिना मानव जीवन निरर्थक है, लक्ष्यहीन है| सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’ के अनुसार समाज में रहकर व्यक्ति में सुरक्षा व एकता का भाव पैदा होता है। समाज में ही व्यक्ति सीखता है व एक दूसरे से सुख दुख बांटता है, उसके चरित्र का निर्माण होता है तथा उचित अनुचित का उसको ज्ञान होता है।

विश्व कला दिवस के उपलक्ष्य में विषय कलाकार पर नन्दा बमराडा ‘सलिला’ ने विजया घनाक्षरी विधा में रचनाओं से मंच संचालन किया| 20 सृजकारों ने कला के नवरस से भरी घनाक्षरी से सभी के दिल को मोह लिया| मंच की अध्यक्षा और संरक्षिका डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ की सप्ताह की गतिविधियों की समीक्षा में रचनाओं की कल्पना, शब्दों और भावों के संगम पर हर्ष प्रकट किया तथा सभी रचनाकारों को विधान सम्मत लेखन और त्रुटियों से दूर रहने की प्रेरणा दी| अशोक दोशी ‘दिवाकर’, सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी’, दिव्या भट्ट ‘स्वयं’ और संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ ने घनाक्षरी में आयी रचनाओं की विवेचना की और साहित्यकारों का विधान से परिचय कराया| अभिकल्पक प्रभारी नीरजा शर्मा ‘अवनि’ ने लेखन प्रतिभागिता के साथ रचनात्मक कोलाज और नीतू रवि गर्ग ‘कमलिनी’ के सक्रिय सहयोग से सम्मान पत्र बनाए और प्रेषित किए ।मीडिया प्रभारी कृष्ण कान्त मिश्र कमल के सक्रिय प्रयास से रचनाओं का संकलन उन्मुक्त आकाश में नयी उड़ाने लेने को अपने पंख फैलाये|