शरद-पूर्णिमा की खीर -आचार्य सुरेश जोशी

🪷 ओ३म् 🪷
*शरद-पूर्णिमा की खीर*
शरद ऋतु आते ही प्रकृति अपना सौंदर्य बिखेरना शुरु कर देती है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली! प्रकृति में सतोगुण की वृद्धि होने लगती है। अन्नों का राजा धान मानव शुक्र में ओज पैंदा करता है! बुद्धि की प्रतिभा जगने लगती है। किसान इस धान की फसल में मद मस्त होकर इसे *चावल,खील,च्यूड़ा* में परिवर्तित करता है। यज्ञ में आहुति देकर पुन : यज्ञ शेष का भक्षण करता है!
सबसे अधिक आनंद आता है 🌕 *शरद पूर्णिमां की खीर* में। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला के साथ उदय होता हैऔर संपूर्ण भू -मंडल को रत्नगर्भा कर देता है। पृथ्वी अमृत तत्व से भर जाती है। अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक व्याधियां शरद पूर्णिमा हर लेती है।विशेष कर 🌕 शदर पूर्णिमा की खीर 🌕 महत्वपूर्ण है। इसकी विधि व लाभों पर एक नजर डालते हैं।
पूर्णिमा की रात्रि में चांवल व गौ दुग्ध में छोटी इलायची,हल्दी गांठ वाली डालकर पका लें।पकजाने पर देशी गुड़ का गर्म पानी मिला लें। चीनी का प्रयोग न करें तो अच्छा है।इस खीर को खुले आसमान में जालीदार वस्त्र या छलनी से ढक लें।जिससे खीर में धूल या कोई कीटाणु न पड़े। सारी रात इस खीर को पूर्णिमां के चांद की किरणों से नहा लेने दें।
दूसरे दिन प्रात: काल स्नान करके दैनिक यज्ञ करें! यज्ञ में आहुति देने के बाद इसे 🪔 यज्ञशेष वा यज्ञ प्रसाद🪔 के रुप में खुद खायें औरों को खिलायें।
इस खीर के सेवन से नेत्र ज्योति बढ़ती है। अस्थमा,कफ की निवृत्ति होती है।मन प्रसन्न व बुद्धि तीब्र होती है। पूर्णिमा की रात्रि में नेत्रों का त्राटक भी करना चाहिए। *वैज्ञानिक दृष्टि से समस्त शारीरिक टाक्सन भी दूर होते हैं। आज चंद्रमा भी पृथिवी के नजदीक होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दुग्ध में 🪷 लैक्टिव अम्ल और अमृत 🪷 होता है।यह किरणों से अधिक मात्रा में दुग्ध अवशोषण करता है।चावल में स्टार्च होने से यह प्रकृया और भी सरल* हो जाती है। देश के अनेक भागों मे इस पर्व के और भी नाम हैं। 🍁 बंगाल में इसे *कोजा गौरी लक्ष्मी* 🍁 गुजरात में इसे *शरद पूनम* कहते हैं।इस तरह आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा की खीर स्वास्थ्य के लिए वरदान है।
🌹 *एक जिज्ञासा* 🌹
शरद पूर्णिमा १६ अक्टूबर को है या १७ अक्टूबर को?
🌸 *प्रमाणिक समाधान*🌸
पचांगों मे १६,१७ दोनों दिन पूर्णिमा दिखाई ग ई है।इसीलिए ऐंसी शंका हो रही है। मगर १७ अक्टूबर को सायंकाल चार बजे पूर्णिमा समाप्त हो जा रही है,इसलिए शरद पूर्णिमा *१६ अक्टूबर* को ही मनाना चाहिए,क्योंकि *पूर्णिमा रात्रि का पर्व है इसलिए १६ अक्टूबर* ही उचित है। १७ अक्टूबर की रात्रि में पूर्णिमा नहीं है।
यह पर्व *पूर्ण रुप से प्राकृतिक,वैज्ञानिक,खगौलिक व चिकित्सा शास्त्र से जुड़ा मानवता का पर्व* है।इसे *हिंदू,मुसलमान,सिक्ख,ईसाई,जैन,बौद्ध ,आस्तिक,नास्तिक,देशी,परदेशी* सभी मना सकते हैं।जिसे भी अच्छा स्वास्थ चाहिए।शांत मन चाहिए,सूक्ष्म बुद्धि चाहिए,आत्मा की पवित्रता चाहिए वो इस पर्व का लाभ ले सकते हैं।
आचार्य सुरेश वैदिक प्रवक्ता
आर्यावर्त्त साधना सदन पटेल
नगर दशहरा बाग बाराबंकी उत्तर प्रदेश