अनुराग लक्ष्य, 1 अक्टूबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता।
एक कोहना मशक शायरा और उत्कृष्ट कवयित्री यासीन मूमल आज की तारीख में हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने मेयारी कलाम से जानी और पहचानी जा रही हैं। एक खास ग़ज़ल आप तमाम पाठकों के लिए ।
1/ कभी छेड़ा जो दिल का साज़ हमने।
सुनी है दर्द की आवाज़ हमने।
2/ ख़फ़ा है इसलिए हमसे ज़माना,
जुदा सबसे रखा अन्दाज़ हमने।
3/ जो दिल की नफ़रतों का है शिकारी,
उड़ा रक्खा है ऐसा बाज़ हमने।
4/ किसी की क़ैंचियाँ कुछ कर न पाईं,
भरी कुछ इस तरह परवाज़ हमने।
5/ बचे हैं वो जो रुस्वाई से अब तक,
छुपा रक्खे हैं उनके राज़ हमने।
6/ वो नफ़रत दिल में रखते हैं तो रक्खें,
मुहब्बत का किया आग़ाज़ हमने।
7/ सफ़र यूँ ज़िंदगी का तय किया है,
उठाये ख़ुद ही अपने नाज़ हमने।
8/ सिफ़त वो “यास्मीं” पैदा की ख़ुद में,
लिया दुश्मन से भी एज़ाज़ हमने।
डॉ. यासमीन मूमल मेरठ यूपी