ग़ज़ल
अक्सर मेरे पास वो आया करता था।
गीत मिलन के मुझे सुनाया करता था।
सपनों का मैं महल बनाया करता था।
फिर उसमें ला तुम्है बसाया करता था।
देख मुझे अक्सर शरमाया करता था।
जाने क्यों वो आंख चुराया करता था।
प्यार मुझे वो करता था बेहद लेकिन।
फिर भी क्यों वो मुझे सताया करता था।
ग़फ़लत की वो नींद न सोने देता सबको।
जो ग़ाफ़िल थे उन्हें जगाया करता था।
तेरी आंखों में जब जब भी डूबा मैं।
तब तब सपनों में मैं खो जाया करता था।
याद मुझे है रूप सहन का वो बरगद।
गर्मी में जो सर पे छाया करता था।
रूपेंद्र नाथ सिंह रूप