तापमान के बढ़ते इस अनुपात से,
नहीं सुरक्षित है कोई आघात से।
वृक्ष काटे जा रहे निज स्वार्थ से,
है नहीं चिंता किसी को स्वस्थ से।।
बह रही है ऊष्मा की लव धरा पे,
जल रहे जन जीव सब इस आग में।
सूखती नदियां गवाही दे रही हैं,
है भयावह स्थिति संसार में।।
इस प्रचंड ऊष्मा के वार से,
बच न पायेगा कोई संसार में।
वृक्षों का पोषण करो निज ध्यान से,
वायुमंडल मुक्त होगा इस कहर से,
प्रंण करो, ” उर्वर” सहित सब आज से,
वृक्षारोपण हम सब करेंगे आज से।।
बच सकेंगे ताप के आघात से।
जी सकेंगे सौ बरस तक शान से।।
साहित्यकार एवं लेखक –
डॉ आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर उ.प्र.
मो. 9043669462