तुम्हारी याद के साये में बैठी हूँ चले आओ,
सुलगती देह पर अहसास का चंदन लगा जाओ…..
अभी तक सांस में ख़ुशबू तुम्हारी खिलखिलाती है,
नयन में स्वप्न की कोई परी भी मुस्कुराती है।
तुम्हारे साथ का वो रेशमी सावन सरसता है,
तुम्हारी बाँह के झूले को ये तन मन तरसता है।
अधूरी प्यास है जीवन, मिलन का नीर बरसाओ….
सुलगती देह पर…
मेरे अधरों पे अधरों ने लिखे जो प्रीत के मौसम,
न ले आएं लरज़ कर प्रिय वियोगी गीत के मौसम।
रचा तुमने महावर जो प्रणय के पांव में साजन,
तनिक देखो विरह में हो गया है किस कदर उन्मन।
चले आओ बहानों से न मेरे दिल को बहलाओ…..
हथेली पर तुम्हारा नाम लिखती हूँ मिटाती हूँ,
कभी आंखों में परिणय का नया मंदिर सजाती हूं।
तुम्हारे बिन अधूरा है मेरी हर साध का आंगन,
मेरी धड़कन ने लिक्खा है तुम्हारे साथ ही जीवन।
मेरे श्रृंगार मेरी मांग का सिंदूर कहलाओ..
निभा चौधरी आगरा ✍️🧘🍂