शरीर रूपी रथ को श्रीेकृष्ण के हाथों में सौंपने वाले विजयी होते हैं -संदीप शरण

9 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा

 

बस्ती ( अनुराग लक्ष्य न्यूज ) शरीर रूपी रथ को जो श्रीेकृष्ण के हाथों में सौंप देता है उसे विजय श्री मिलती है ।यदि आप अपने माता- पिता की सेवा , सम्मान करते हैं तो पुराणों लिखा है कि आपको मोक्ष मिलेगा। ‘चार पदारथ करतल ताके। जे पितु- मातु प्राण सम जाते।।’ जो भी माता पिता को प्राण के समान अपने माता- पिता को मानता है। अर्थ, धर्म, काम ,मोक्ष देने के लिए परमात्मा खुद उसके सामने आते हैं। श्रीकृष्ण प्रेम मंें पागल बनोगे तो शांति मिलेगी। भोग भक्ति में बाधक है। बिना वैराग्य के भक्ति रोती है। परमात्मा जिसे अपना मानते हैं उसे ही अपना असली स्वरूप दिखाते हैं। मनुष्य परमात्मा के साथ प्रेम नहीं करता इसीलिये ईश्वर का अनुभव नहीं कर पाता। सब साधनों का फल प्रभु प्रेम है। यह सद् विचार आचार्य संदीप शरण शुक्ल ने बेलगड़ी में आयोजित 9 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन हुये व्यासपीठ से व्यक्त किया।

परमात्मा के यश कीर्तन और भक्ति महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि सच्चे सदगुरू का कोई स्वार्थ नहीं होता। सतसंग से संयम, सदाचार, स्नेह और सेवा के भाव का विस्तार होता है। निरन्तर जप से जन्म कुण्डली के ग्रह भी सुधर जाते हैं। भक्ति को सर्वगुणों की जननी बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रथम स्कन्ध अधिकार लीला है। भागवत शास्त्र मनुष्य को सावधान कर काल के मुख से छुडाता है। जो सर्वस्व भगवान पर छोड़ते हैं उनकी चिन्ता स्वयं भगवान करते हैं। मन के गुलाम मत बनो, मन को गुलाम बनाओ, जगत नहीं बिगडा है, अपना मन बिगडा है। परीक्षित राजा ने मन को सुधार लिया तो उन्हें शुकदेव जी मिल गये। भगवान योगी भी हैं और भोगी भी हैं किन्तु जीव भोगी है, योगी नहीं।

भक्त प्रहलाद, हिरण्यकश्यप आदि के अनेक उदाहरण देते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रभु भजन में आनन्द आये तो भूख प्यास भूल जाती है। मानव जीवन का उद्देश्य केवल धन संग्रह नही है। धर्म मुख्य है। धन को धर्म की मर्यादा में रहकर ही प्राप्त करना चाहिये। जगत में दूसरों को रूलाना नहीं, खुद रो लेना, रोने से पाप जलता है।

श्रीमती आशा शुक्ला और अष्टभुजा प्रसाद शुक्ल ने परिजन और श्रद्धालुओं के साथ कथा व्यास का विधि विधान से पूजन अर्चन किया। कथा में मुख्य रूप से श्रीमती आशा शुक्ला और अष्टभुजा प्रसाद शुक्ल ने परिजन और श्रद्धालुओं के साथ कथा व्यास का विधि विधान से पूजन अर्चन किया। परमपूज्य रामचन्द्र शुक्ल, श्रीमती सरोज शुक्ला की स्मृति में आयोजित कथा में मुख्य रूप से दुर्गा प्रसाद शुक्ल, डॉ० जगदम्बा प्रसाद शुक्ल, डॉ. अम्बिका प्रसाद शुक्ल, अखिलेश कुमार शुक्ल अजय कुमार शुक्ल, आनन्द कुमार शुक्ल, विशाल शुक्ल, अभिषेक शुक्ल, आंजनेय शुक्ल, अमित शुक्ल, डॉ० मारूति शुक्ल, सर्वज्ञ शुक्ल, सूर्याश शुक्ल मंगलम शुक्ल, आदित्य शुक्ल, आराध्य शुक्ल, शिवाय शुक्ल, अच्युत गोविन्द शुक्ल के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे