कोई किताब मुझ को पुरानी नहीं मिली,
इस वास्ते तो उसकी निशानी नहीं मिली।
कम्बख़्त इश्क़ का है फ़क़त इतना फसाना,
राजा नहीं मिला कहीं रानी नहीं मिली।
सिरहाने रख के जिस को ज़रा देर मैं सिसकूँ,
ऐसी कोई भी मुझ को कहानी नहीं मिली।
अच्छी भली मैं छोड़ के आया था गाँव पर,
लौटा मैं जब बिदेस से नानी नहीं मिली।
रंगीन कुमकुमों से सजे घर मिले बहुत,
लेकिन फ़ज़ा कहीं भी सुहानी नहीं मिली।
सुनते थे वो पठान हैं लेकिन जब मैं मिला,
लहजे में उसके कोई पठानी नहीं मिली।
शिमला की सर्दियों में मिली थी जो एक बार,
मुझ को नदीम फिर वो सेयानी नहीं मिली।
नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर॥