ग़ज़ल
प्यार में फिर से बहक जाओ कि कुछ रात कटे।
ज़ख्मे दिल को ज़रा सहलाओ कि कुछ रात कटे।
आह रह रह के उभरती है भला क्यूं दिल में।
रफ्ता रफ्ता ही चले आओ कि कुछ रात कटे।।
मौसम ए गुल में कहीं फिर न बिछड़ जाना तुम।
वक्त के सांचे में ढल जाओ कि कुछ रात कटे।।
उम्र कट जाएगी क्या दुनिया में रोते रोते।
दिल की बगिया में बरस जाओ कि कुछ रात कटे।।
जिसको सुनकर के मुहब्बत की नदी पार हुए।
फिर वही गीत सनम गाओ कि कुछ रात कटे।।
बिन तुम्हारे यहां जीना है कहां अब हर्षित।
ये मुअममा ज़रा सुलझाओ कि कुछ रात कटे।।
विनोद उपाध्याय हर्षित