,,,,,,,,,,,ग़ज़ल,,,,,,,,
यह उनकी नफ़रती फितरत हमें हैरान करती है, साहिल प्रतापगढ़ी,,,,,
अनुराग लक्ष्य, 27 सितंबर
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
आज मुंबई में एक शायर है जिसे दुनिया ए अदब साहिल प्रतापगढ़ी के नाम से जानती और पहचानती है। अच्छी ग़ज़लों के साथ मुशायरों में भी भरपूर शिरकत कर रहे हैं। पेश है आज उन्हीं की एक खास ग़ज़ल,
१- निगाहों में फतह के ख़्वाब जिन लोगों के पलते हैं,
उन्ही को है मिली मंजिल जो गिर गिर के संभलते हैं ।
२- हवाएं साथ कलियों को उड़ा के ले गयीं अपने,
वो भौंरे शाख पे बैठे फकत हाथों को मलते हैं ।
३- ये उनकी नफरती फितरत हमें हैरान करती है,
वरक़ तारीख के जाने वो आखिर क्यों बदलते हैं ।
४- ये तो है ज़ौके उल्फत या इसे दिवानगी कहिये,
शमा के साथ परवाने जो खामोशी से जलते हैं ।
५- थकन से चूर हैं मजदूर पांवों में भी छालें है,
लबों पे न गिले उनके न तो आंसू निकलते हैं ।
६- इशारों को समझ ज़ालिम नहीं ये बुजदिली कोई,
दबे पा शेर जब पीछे कदम दो चार चलते हैं ।
७- पुराने हैं सजर तो क्या कभी इनको नहीं काटो,
इन्हीं की छांव में *साहिल* हमेशा हम टहलते हैं ।
,,,, पेशकश सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,