सावन मनभावन – प्रज्ञा शुक्ला

*सावन मनभावन*

 

रिमझिम रिमझिम सावन की बूंदें

घन घन कारे बदरा झूमें

ओढ चुनरिया धानी धानी

धरती भी आज करे मनमानी

अमिया की डाली पे कोयल

गाए मीठी ताने

बजने लगी बूंदों की थापे

पंछी लगे मल्हार गाने

खेतों को फिर आस जगी

बीजों का मन मुसकाया

धरती के आंखों में सपने

अम्बर ने अपना फ़र्ज़ निभाया

हल की धारों में उम्मीदें

कण कण में जीवन छाया

भीगा आंगन कागज की नावे

बचपन याद दिलाए

गलियों में पानी की धारा

किस्सा कोई सुनाए

बिजली चमके बादल गरजे

मौसम बने सुहाना

झूम झूम के लतिका छेड़े

आज ताल कोई पुराना

पड़ गए झूले पीपल पर

गूंज उठी गीतों की झंकार

लहके गजरा बहके कजरा

दिल में उठे पिया का प्यार

कच्चे रस्ते सोंधी खुशबू

नीम के नीचे हंसी ठिठोली

छत पे बैठी प्रीत लिखे

भीगे कागज पे गोरी

टप्पर से टपके बूंदे

जब धरती तान लगाए

मिट्टी की सोंधी खुशबू भी

जीवन का राग सुनाए

आंगन में रखे मटकों पर

बूंदे नाचे रुनझुन रुनझुन

भर गए ताल तलैया सारे

जीयरा गाए आज मधुर धुन

*__________ *प्रज्ञा शुक्ला वृंदा*

लखनऊ उत्तर प्रदेश*