गृहस्थ जीवन केवल एक छत के नीचे साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि यह प्रेम, सम्मान, सहयोग और समर्पण की साझेदारी का नाम है। एक सशक्त गृहस्थी तभी बनती है जब पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे के कार्यों को सम्मान दें, सराहना करें और एक टीम की तरह साथ चलें।
भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से यह व्यवस्था रही है कि पुरुष बाहर जाकर काम करता है और स्त्री घर संभालती है। हालांकि आज के दौर में यह तस्वीर काफी बदल रही है, महिलाएं भी नौकरी कर रही हैं, ऑफिस जाती हैं और आर्थिक रूप से परिवार में योगदान दे रही हैं। लेकिन आज भी बहुत से परिवारों में यह परंपरा बनी हुई है कि पुरुष कमाते हैं और महिलाएं घर का काम संभालती हैं। यह व्यवस्था यदि आपसी समझदारी से बनी हो, तो यह किसी भी गृहस्थी के लिए एक मजबूत नींव साबित हो सकती है।
लेकिन दुःख की बात यह है कि आज भी घर की महिलाओं को सिर्फ इसलिए कमतर आंका जाता है क्योंकि वे ‘पैसा’ नहीं कमातीं। अक्सर पति अपनी पत्नी से यह कह देते हैं — “तुम करती ही क्या हो? सारा दिन घर में ही तो रहती हो।” यह एक ऐसा वाक्य है जो किसी भी महिला के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकता है। यह भूल जाना कि घर को सुचारु रूप से चलाना, बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल, हर छोटे-बड़े कार्य का समर्पण — ये सब कार्य बिना किसी छुट्टी के लगातार निभाए जाते हैं।
पति बाहर जाकर पैसा कमाते हैं, यह सच है और प्रशंसनीय भी। लेकिन जो पत्नी घर को सजाती, संवारती, बच्चों को संस्कार देती, हर सदस्य की जरूरत का ध्यान रखती है — उसका काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है। दोनों भूमिकाएं एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर दोनों में से कोई एक पक्ष ढह जाए, तो गृहस्थी की गाड़ी भी डगमगा जाती है।
इसलिए जरूरी है कि दोनों एक-दूसरे की जिम्मेदारियों को समझें, सराहें। पत्नी के हाथों का स्वादिष्ट भोजन सिर्फ ‘ड्यूटी’ नहीं, एक कला है। घर का साफ-सुथरा वातावरण केवल एक रूटीन नहीं, एक मानसिक सुकून है। जब पति घर आएं, तो अपनी पत्नी से कहें — “तुमने घर बहुत अच्छे से संभाला है, खाना बहुत स्वादिष्ट है।” वही पति अगर छुट्टी के दिन बच्चों के साथ समय बिताएं या पत्नी के कहने पर किचन में कुछ मदद करें, तो इससे रिश्ते में नयापन आता है।
जो महिलाएं घर पर रहती हैं, उन्हें भी यह समझना चाहिए कि खुद के लिए समय निकालना, अपने शौक पूरे करना, अपने आत्मविश्वास को बनाए रखना बहुत जरूरी है। वे सिर्फ ‘हाउसवाइफ’ नहीं हैं, वे होम मेकर हैं — जो एक घर को चार दीवारों से ‘परिवार’ में बदलती हैं। इसलिए अपने लिए भी समय निकालें — किताब पढ़ें, पेंटिंग करें, गाना गाएं, ट्रैवल ब्लॉग्स बनाएं, योग या व्यायाम करें, जो भी आपको सुकून दे।
हमेशा याद रखें — नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, प्रतियोगी नहीं। जब दोनों मिलकर सम्मान, समझदारी और स्नेह से गृहस्थी चलाते हैं, तभी सच्चे अर्थों में सुखद जीवन संभव होता है।
नारी बनाम पुरुष नहीं,
नारी और पुरुष — साथ-साथ।
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग छत्तीसगढ़