**बच्चों को दें कोई हुनर, ताकि वो बन पाएँ अपनी जिंदगी के विनर..*
*अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)*
पिछले दिनों एक वीडियो देखने में आया, जहाँ महज ढाई-तीन साल का एक कोरियन बच्चा अपने अन्य दोस्तों के साथ अपनी कक्षा में बड़ी ही सावधानी और सफाई के खाना पकाना सीख रहा था। उन बच्चों को देखकर बड़ा अच्छा लगा। साथ ही, इतने छोटे बच्चों को खाना पकाते देख थोड़ा आश्चर्य भी हुआ, क्योंकि हमारे यहाँ तो ढाई-तीन साल की उम्र में बच्चे ठीक से बोलना तक नहीं सीख पाते हैं। ऊपर से उन बच्चों को यह उनके स्कूल में सिखाया जा रहा था, यह देख
कर तो और हैरानी हुई, क्योंकि हमारे यहाँ तो इतने छोटे बच्चों को ठीक से उठाना-बैठना तक नहीं आता। और तो और हमारे लिए खाना पकाना आना इतना जरुरी भी नहीं कि इसे स्कूल में सिखाया जाए। हमें तो हमारे बच्चों को केवल डिग्री होल्डर बनाना है, जहाँ वो सिर्फ किताबी ज्ञान रटकर फर्स्ट डिविजन में पास हो जाएँ। हम स्कूलों और घर में भी हमारे बच्चों केवल रट्टू तोता बनाने के लिए लगे हुए हैं। जीवन में उन्हें सफल बनाने के लिए क्या इतना करना ही
काफी होगा?
जहाँ दुनिया इतनी तेजी से आगे बढ़ रही है और पढ़ाई के अलावा भी कमाई के कई तरीके हैं, वहाँ केवल किताबी ज्ञान दे देने से हमारा काम पूरा नहीं हो जाएगा, बल्कि अपने बच्चे को सफल बनाने के लिए जरुरी है कि उसे पढ़ाई के साथ-साथ एक हुनर भी सिखाया जाए, जो उसे अपना करियर बनाने में मदद कर सके। फिर चाहे वह कोई खेल हो या कोई कला, यह एक हुनर आपके बच्चे के व्यक्तित्व को एक नई पहचान देने में मददगार हो सकता है। साथ ही, यही हुनर उसका मुसीबत का साथी भी बन सकता है। जहाँ उसका किताबी ज्ञान या डिग्री काम नहीं आएगी, वहाँ यही हुनर उसकी कमाई का साधन बन सकता है।
इसकी शुरुआत घर और स्कूल दोनों से करनी होगी। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ खेल, साहित्य, कला जैसे विषयों को भी बराबरी के साथ पढ़ाया जाए। घर में बच्चों को अपनी क्षेत्रीय बोली, कला और संस्कृति सिखाई जाए, जिससे वो खास हुनर सीख पाएँगे, साथ ही इस तरह हम अपनी विरासत भी अपनी अगली पीढ़ी तक पहुँचा पाएँगे। कहा जाता है कि 90% दिमाग का विकास पाँच साल की उम्र तक हो जाता है, इसलिए जरुरी है कि कोई भी नई चीज़ की शुरुआत इस उम्र के पहले ही कर दी जाए। जहाँ दो-ढाई साल के बच्चे को हम मोबाइल पकड़ा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं, इसके बजाए खेल-खेल में, कहानी-किस्सों के रूप में उन्हें नई चीजों से अवगत कराएँ।
अब सवाल यह उठता है कि एक छोटे-से बच्चे को आखिर क्या-क्या सिखाया जाए, तो इसका हल भी है मेरे पास। आप उसके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों पर नज़र रखिए, वह क्या काम करना पसंद करता है, जैसे कि क्या उसे गुनगुनाने की आदत है? या फिर डंडी जैसी कोई भी वस्तु मिलने पर वह उसे ढोल बजाने वाली डंडी की तरह इस्तेमाल करने लगता है.. पानी वाली किसी भी जगह जाने पर काफी खुश हो जाता है, या फिर गाना सुनते ही थिरकने लग जाता है.. अर्थात् बच्चे की रूचि का पता आप उसकी पसंद-नापसंद से पता कर सकते हैं, बस उसकी उस रूचि को ही उसका कौशल बनाने में उसका साथ दें। क्या पता आज जो बच्चा पढ़ाई में कमजोर हो, वह किसी दिन अपने पसंदीदा खेल आदि में कोई रिकॉर्ड बना जाए। अभिभावक होने के नाते हम भी तो बस इतना ही चाहते हैं कि
तेजी से भागती इस दुनिया में हमारा बच्चा सफल रहे, इसलिए जरुरी है कि पढ़ाई के साथ-साथ उसे कोई हुनर भी दें और इसकी शुरुआत बचपन से ही की जाए…..