डाक्यूमेंट्री- डा. सुधीर श्रीवास्तव 

डाक्यूमेंट्री- डा. सुधीर श्रीवास्तव

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आज मैं ऐसे शख्श की बात करने जा रहा हूँ जो आपने आप में खुद एक मंच है, खुद एक संगठन है । जो सार्वजनिक रूप से देहदान की घोषणा कर चुका है । जो अपने को यमराज का मित्र बताने में तनिक भी संकोच नहीं करता है ।जो युवा रचनाकारों के दिलो पर राज करता है, इनका मित्र, प्रेरक, मार्गदर्शक सारथी की भूमिका में होने के साथ और पाठकों की पसंद बन गया है । आप समझ गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ, नहीं समझे, तो मै ही बता देता हूँ -उनका नाम है डॉ सुधीर श्रीवास्तव।आज उन्हीं से कुछ सवाल जबाब कर आपके समझ रख रहा हूँ –

 

आपके जीवन से संबंधित कुछ सवाल जो आपको खास बनाते है कवि महोदय पहला सवाल —

 

1. आपका शुभनाम क्या है कवि महोदय ?

○ मैं डॉ सुधीर श्रीवास्तव

 

2. आपका जन्म कहाँ और कब हुआ था?

 

○ मेरा जन्म बरसैनियां लखपतराय

विकास खंड/तहसील मनकापुर, जिला-गोण्डा,उ.प्र.

सन् 01.07.1969

 

3. आपके पिता जी का क्या नाम था ?

 

○ -स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव

 

4 . आपकी माता जी का क्या नाम था ?

 

○ स्व. श्रीमती विमला देवी

 

5. आपने परिवार के बारे में कुछ बताएं?

○ धर्मपत्नी,-अंजू श्रीवास्तव

पुत्री – संस्कृति, गरिमा

 

6. आपकी शिक्षा क्या है और आपने कहाँ से पढ़ाई की है?

○ स्नातक, आई.टी.आई.पत्रकारिता, गोण्डा, फैजाबाद ( वर्तमान में अयोध्या)

 

7. आपने लेखन कब प्रारंभ किया ?

 

○1984….1985 से, पुनः 2000 से अनवरत

 

8. आपके जीवन में कौन से अनुभव सबसे अधिक प्रभावशाली रहे हैं?

 

○ वैसे तो जीवन में कई मोड़ आए, लेकिन 25 मई 2020 को मुझे पक्षघात हुआ जो मुझे बहुत खला और मैंने हार नहीं मानी, जो मेरे लिए बहुत मुश्किल का वक्त था, लेकिन यही पक्षाघात मेरे साहित्यिक जीवन के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है।

 

7. आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और आपने उन्हें कैसे पार किया?

 

○ जीवन से लेकर आज तक चुनौतियाँ का सामना कर रहा हूँ। मुश्किलों से घबराने के बजाय लड़ने का प्रयास करता हूँ। थोड़ा जिद्दी हूँ। साफ सुथरी बात करने का स्पष्टवादी व्यक्ति हूँ। सामने कहने में विश्वास करता हूँ। वर्तमान में अपनी चुनौतियों से पार पाने के लिए मैंने यमराज को अपना मित्र बना लिया है ।

 

*कार्य से संबंधित सवाल*

 

1. आपका कार्य क्षेत्र क्या है और आप क्या काम करते हैं?

○ अब तो केवल लेखन और स्वास्थ्य लाभ ही कर रहा रह गया है। क्योंकि स्वास्थ्य की शारीरिक दुश्वारियां जो है। साहित्य पढ़ना, लिखना जीवन का कार्य है ।

 

2. आपकी कविताएं और लेखन किस प्रकार के विषयों पर केंद्रित होते हैं?

○ मेरा लेखन सामाजिक मुद्दों पर, विडंबनाओं, मुद्दों पर व्यंग्यात्मक, संदेश परक होता है ।

 

3. आपने साहित्यिक योगदान के बारे में कुछ बताएं?

○ नवांकुरों को पहल देना और उनके सामने जो भी लेखन में कठिनाई आ रही है उन्हें प्रेरित करते हुए दूर करना और साहित्य के माध्यम से हिंदी के प्रचार प्रसार करना।

 

4. आपको किन पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया है?

○ यूँ तो मैं पुरस्कारों के फेर में नहीं रहता। फिर भी अब तक 2400 सम्मान /ई सम्मान से अधिक सम्मान प्राप्त हो चुके है लेकिन उन में से भी कुछ खास है

लेकिन कुछ विशेष सम्मान निम्न है ।

 

👉हिन्दी साहित्य भारती सम्मान -२०२५( हिंदी साहित्य भारती -ब्रज प्रांत)

👉 विद्या सागर मानद सम्मान (काशी हिंदी विद्यापीठ वाराणसी)

👉विद्या वाचस्पति मानद सम्मान 2024 ( विक्रम शिला विद्या पीठ भागलपुर/ बजरंग लोक मानस कल्याण समिति प्रतापगढ

 

प्रेरणा और विचार से संबंधित सवाल

 

1. आपको कविता और लेखन के लिए प्रेरणा कहाँ से मिलती है?

○ विद्यार्थी जीवन में मुझे अखबार पढ़ने का शौक था, फिर एक बार एक रिश्तेदार ने एक कहानी सुनाकर कुछ लिखने की कोशिश करने। पत्र पत्रिकाओं में और के नाम के साथ अपने नाम होने की भावना से प्रेरित हुआ।

 

2. आपके विचार में साहित्य की क्या भूमिका है?

○साहित्य की सामाजिक स्तर पर विशेष भूमिका है ।

○साहित्य समाज का दर्पण होता है ।

○साहित्य के माध्यम से सवाल जबाव पूछ कर समाज के सामने सत्य को रखना एक अच्छे साहित्यकार की निशानी है ।

 

3. आप अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहते हैं?

○हमेशा अच्छा पढ़ते रहें, अच्छा सोचें। कम किंतु अच्छा लिखने का प्रयास करें। सीखने की जिज्ञासा रखें। आलोचनाओं से डरें नहीं ।

 

4. आपके जीवन में कौन से मूल्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं?

○सत्य के अलावा खुद पर विश्वास

 

5. आप अपने भविष्य के लक्ष्यों के बारे में कुछ बता सकते हैं?

○बस इतनी सी तम्मना है साहित्य सृजन करते हुए माँ भारती के श्रीचरणों में स्थाब पाऊँ और कम से कम एक दर्जन एकल संग्रह का प्रकाशन।

 

1. आपकी साहित्यिक उपलब्धि क्या क्या है ?

○ अब तक मेरी तीन पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है और दो प्रकाशकाधीन हैं । जो प्रकाशित हुई उनके नाम “यमराज मेरा यार” ( हास्य व्यंग्य संग्रह), ‘कथालोक’ ( लघुकथा संग्रह), तीर्थ यात्रा ( संस्मरण संग्रह)

 

3. आपके साहित्यिक योगदान ने समाज पर क्या प्रभाव डाला है?

○ अपने मुँह से अपनी बात कहना अच्छा नहीं है लेकिन आपने सवाल किया है तो कईं कलमकारों ने मुझे गुरू का दर्जा दिया है, कई मंचो ने मुझे अपने शीर्ष पदाधिकारी के रूप में मनोनीत किया है और कई ने

ई. पत्रिका में संपादन मंडल में रखा बस, अनेक मंचों पर मांगने पर भी मैं अपना अभीष्ट देने का प्रयास करता हूँ।इसी बात से आप मेरे योगदान का अंदाजा लगा सकते है ।

 

4. आपके कार्यों में कौन से मूल्य और विचार प्रमुख हैं?

○मैं हमेशा स्पष्ट नीति का व्यक्ति हूँ लोभ और लालच मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है ।

 

5. आपकी लेखन शैली क्या है और आप कैसे अपने विचारों को व्यक्त करते हैं?

○ मैंने अतुकांत कविताओ से साहित्य जीवन् की यात्रा प्रारंम्भ की थी। लेकिन आज मैं दोहा, चौपाई मुक्तक, गद्य, आदि के माध्यम से अपनी बात रखता हूँ।

 

6. आपके साहित्यिक कार्यों को किन लोगों या अनुभवों से प्रेरणा मिली है?

○ बहुत से ऐसे लोग है जिनको मेरे साहित्यिक जीवन से प्ररेणा मिली है एक हो तो गिनाऊँ अनेक लोग है ।

 

7. आपके कार्यों का अनुवाद किसी और भाषाओं में हुआ ?

○ अभी तो नही हुआ आगे प्रयास रहेगा ।

 

9. आपके कार्यों ने पाठकों और साहित्यिक समुदाय में क्या प्रतिक्रिया उत्पन्न की है?

○मैं आज जो कुछ भी हूँ, अपने पाठकों की वजह से हूँ जो उनकी प्रतिक्रिया की वजह से साहित्य में एक मुकाम बना हुआ है। मैं सभी पाठकों शुभचिंतको का आभार प्रकट करता हूँ ।

 

10. आप आगे क्या साहित्यिक कार्य करने की योजना बना रहे हैं और आपके लक्ष्य क्या हैं?

○अभी तो मेरी दो पुस्तक प्रकाशकाधीन है । आगे यह कांरवा ईश्वर कृपा से चलता रहे । भविष्य की कई योजनाएं है लेकिन सब ईश्वराधीन हैं।

 

11. आपके पुरस्कारों और सम्मानों के लिए आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

○ चुनौती तो जीवन का एक हिस्सा है जो हमेशा से जुड़ा रहता है । मैं लिखता गया और मुझे पता ही नही चला और सम्मान मिलता गया ।

12. आपके पुरस्कारों और सम्मानों ने आपके भविष्य के लक्ष्यों को कैसे प्रभावित किया है?

○ यह बात सही है कि जब किसी को कोई सम्मान मिलता है तो जीवन मे सकारत्मक ऊर्जा का संचार करता ही है । और मैं भी साहित्य यात्रा कर रहा हूँ और साहित्य ने मेरे जीवन को कई नए आयाम दिए । एक नईं पहचान दी । और आसानी से मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हूँ लेकिन देश विदेश के अनगिनत लोगों से मिल रहा मान- सम्मान, प्यार, दुलार, आशीर्वाद, प्रेरणा, मार्गदर्शन और विश्वास जो मुझे मिला और मिल रहा है। वह मेरे लिए न केवल अमूल्य है बल्कि किसी भी सम्मान से बड़ा है।

 

13. आपके पुरस्कारों और सम्मानों के बारे में आपके अनुभव क्या हैं?

○मैंने सम्मान की चाह में कभी लेखन नहीं किया, किंतु मैंने लेखन करते समय अपनी लेखनी को प्रभावशाली बनाने के लिए अपने शब्दकोश को बढ़ाने पर ध्यान दिया। हाँ मैने सरल शब्दों में लिखने का प्रयास किया, ताकि आसानी से पाठकों के दिल मे मैं जगह बना पाऊँ जिसमें मैं काफी हद तक मैं सफल भी रहा ।

 

आपकी कोई एक रचना जो पाठकों को बहुत पसंद आई । आपके समझ से –

मंथरा

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आज ही नहीं आदि से

हम भले ही मंथरा को

दोषी ठहराते, पापी मानते हैं

पर जरा सोचिये कि यदि मंथरा ने

ये पाप न किया होता

तो कितने लोग होते भला

जो राम को जान पाते।

कड़ुआ है पर सच यही है

शायद ही राजा राम का नाम

हम आप तो दूर हमारे पुरखे भी जान पाते।

सच से मुँह न मोड़िए

हिम्मत है तो स्वीकार कीजिये

राम के पुरखों में कितनों को हम आप जानते हैं?

कितनों के नाम जपते हैं?

सच तो यह है कि दशरथ को भी लोग

सिर्फ राम के बहाने ही याद करते हैं,

जबकि दशरथ के पिता

राम के बाबा का नाम भला कितने लोग जानते हैं?

भला हो मंथरा का जिसनें कैकेई को भरमाया

कैकेई की आड़ में राम को वनवास कराया।

फिर विचार कीजिये

भरत को राजा बनाने के लिए

कैकेई को क्यों विवश नहीं किया?

भरत राम को वापस लाने वन को गये

तब मंथरा ने कैकेई से हठ क्यों नहीं किया ?

क्यों नहीं समझाया,

क्या उसे अपने हठ का अधूरा परिणाम भाया?

सच मानिए तो दोषी मंथरा है

फिर ये बात राम के समझ में क्यों नहीं आया?

समझ में आया तो, अयोध्या वापसी पर

मंथरा को गले क्यों लगाया? सम्मान क्यों दिया?

कहने को हम कुछ भी कहते फिरते रहते हैं

गहराई में भला कब झांकते हैं?

सच तो यह है कि

कैकेई सिर्फ़ बहाना बनी,

राम को राजा राम नहीं

मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने का

मंथरा ही थी जो सारा तानाबाना बुनी।

सोचिए! उस कुबड़ी ने कितना विचार किया होगा?

राम के साथ नाम जुड़ने का कितना जतन किया होगा?

आज हम राम और रामायण की बातें तो बहुत करते हैं,

पर भला मंथरा के बिना

राम और रामायण का गान पूर्ण कब करते हैं?

मानिए न मानिए आपकी मर्जी है

पर मंथरा के बिना

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम सिर्फ़ खुदगर्जी है।

क्योंकि राम तो राजा राम बन ही जाते,

मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने की

असली सूत्रधार तो मंथरा ही है,

पापिनी, कुटिल कलंकिनी बनकर भी

रामनाम के साथ तो जुड़ी ही है।

 

अंत मे आपके बारे मे इतना सब कुछ जानकर अच्छा लगा। मैं ईश्वर से कामना करता हूँ आप जीवन मे स्वास्थ्य दीर्घायु मस्त रहे और आगे भी साहित्य जगत में यूँ ही परचम लहराते रहे

 

भेंट कर्ता:

 

डॉ अमित कुमार बिजनौरी

कदराबाद खुर्द स्योहारा

जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश