“आपदाओं में मानवता का महत्त्व और मानव के कर्त्तव्य
उन्मुक्त उड़ान साहित्यिक मंच द्वारा इस सप्ताह का साप्ताहिक रचना विषय “आपदाओं में मानवता का महत्त्व और मानव के कर्त्तव्य” रखा गया, जिसने रचनाकारों को संवेदना, सामाजिक चेतना और मानवीय दायित्वों की ओर सृजनात्मक रूप से उन्मुख किया। कार्यक्रम में साहित्य साधकों ने आलेख के माध्यम से यह दर्शाया कि जब आपदाएं आती हैं — चाहे वह प्राकृतिक हों जैसे बाढ़, भूकंप, महामारी, या मानवजनित हों जैसे युद्ध, हिंसा या विस्थापन — मानवता ही वह दीपक है जो अंधकार में प्रकाश देता है।
डॉ. दवीना अमर ठकराल ‘देविका’ मंच अध्यक्षा एवं संरक्षिका ने कहा – “जब चारों ओर पीड़ा पसरी हो, तब करुणा और सेवा ही वह शक्ति हैं जो हमें इंसान बनाती हैं। आपदा के समय मानवीय संवेदनाएँ ही समाज की असली पहचान होती हैं।”
डॉ फूलचंद्र विश्वकर्मा भास्कर आयोजन प्रभारी के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं से तो हम निपट सकते हैं, किंतु मानव निर्मित आपदाओं में मानवता कुचली जाती है। स्वर्ण लता सोन कोकिला का मानना है कि कर्तव्यों को निभाकर हम मानवता का परिचय दे सकते हैं और आपदा पीड़ितों की मदद कर सकते हैं। रामेश्वर प्रसाद बिल्हेरिया ने आपदा का भयावह चित्रण कर एकजुटता का आव्हान किया| परमा दत्त झा मानते हैं कि सत्कर्म ही मानव धर्म है। अशोक दोशी दिवाकर कहते हैं कि आपदा को लालच का अवसर नहीं बनाना चाहिए| दिव्या भट्ट ‘स्वयं’ के अनुसार ऐसी आपदाओं में मानवता दिखाते हुए, यथाशक्ति सबकी सहायता करनी चाहिए। सुरेश सरदाना कहते हैं कि कमज़ोर वर्ग, वृद्ध, महिलाएं तथा बच्चे आपदा में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इनकी सुरक्षा करना प्रथम कर्त्तव्य बन जाता है। नंदा बमराडा सलिला किया मानना है कि आपदाग्रस्त व्यक्ति ऐसे समय में टूट जाता है उन्हें जीवन जीने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता होती है। वीना टन्डन ‘पुष्करा’ का मानव जीवन की सार्थकता का मंत्र – दूसरों के लिए सहायता करना और जीना है। नीरजा शर्मा ‘अवनि’ कहती हैं कि आज मानवता जिंदा है तभी संसार चल रहा है। रंजना बिनानी काव्या के अनुसार जब भी कोई आपदा आए तो हमें संयम और शांति के साथ मदद करनी चाहिए। “आपदा में सहायता केवल अनुदान नहीं, आत्मा का उत्तरदायित्व है। संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ के आलेख ने यह बताया कि आपदा में किया गया एक छोटा सा सहयोग, किसी के जीवन की सबसे बड़ी उम्मीद बन सकता है। “आपदा के अँधेरे में यदि कोई उजाला है, तो वह केवल मानवता की ज्वाला है।” अनु तोमर अग्रजा लिखती हैं आपदाएं कहीं भी किसी भी रूप में आ जाती हैं। हमारे हाथ सदा सहायता के लिए उठने चाहिए । प्रजापति श्योनाथ सिंह “शिव” के अनुसार अपने लिए तो सभी जीवन जीते हैं किन्तु जो दूसरों के लिए जिए वही सच्ची मानवता है।
उन्मुक्त उड़ान मंच का यह आयोजन साहित्य को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जिम्मेदार अभिव्यक्ति का माध्यम मानने की दिशा में एक प्रेरक कदम रहा। मंच के प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया कि लेखनी में केवल शब्द नहीं, बदलाव की शक्ति भी होती है। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागी रचनाकारों को विशेष सम्मान-पत्र प्रदान किए गए, जो नीरजा शर्मा ‘अवनि’ और नीतू रवि गर्ग ‘कमलिनी’ द्वारा संयोजित और डिज़ाइन किए गए। सुरेश चंद्र जोशी ‘सहयोगी; द्वारा की गयी हर आयोजन की समीक्षा और कृष्ण कान्त मिश्र ‘कमल’ एवं संजीव कुमार भटनागर ‘सजग’ द्वारा विज्ञप्ति के लिए रचनाओं का संकलन और विश्लेषण कार्यक्रम की सफलता के नए मापदंड रचते हैं|