महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या । उत्तर प्रदेश: इटावा में एक ब्राह्मण कथावाचक के साथ हुई कथित दुर्व्यवहार और चोटी काटने की घटना पर ओजस्वी फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं जगतगुरु परमहंस आचार्य के उत्तराधिकारी राजर्षि महंत एकनाथ महाराज ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने इस घटना को केवल व्यक्तिगत अपमान नहीं, बल्कि एक सुनियोजित राजनीतिक षड्यंत्र बताया। महाराज ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह घटना यादव और ब्राह्मण समाज के बीच फूट डालने की राजनीति का हिस्सा है, जिसका लाभ विपक्षी दल, विशेषकर समाजवादी पार्टी, उठाना चाह रहे हैं।
महाराज ने आरोप लगाया कि जब विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं होता, तब वे जातीय और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर समाज को बांटने की कोशिश करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इस तरह की घटनाओं पर सामाजिक और धार्मिक संगठन चुप रहे तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
कथावाचकों की कार्यशैली पर भी उठाए सवाल
राजर्षि महंत एकनाथ महाराज ने इस घटना के बाद कथावाचकों की वर्तमान कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि आज कथा के नाम पर विभूति बांटना, पर्ची निकालना, भूत-प्रेत भगाना और महिलाओं से मंच पर नृत्य करवाना जैसे कृत्य सनातन धर्म की मर्यादा के विपरीत हैं और अंधविश्वास व पाखंड का प्रचार करते हैं। महाराज ने यह भी कहा कि कई कथावाचक करोड़ों की संपत्ति के मालिक बन चुके हैं, महंगी गाड़ियों में चलते हैं और धर्म के नाम पर एक तरह से ‘दुकानदारी’ कर रहे हैं।
उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण के घायल होने पर किसी माया या चमत्कार का सहारा नहीं लिया, बल्कि वैद्य सुषेण से उपचार कराया। महाराज ने धर्माचार्यों और शंकराचार्यों से अपील की कि वे ऐसे कथावाचकों पर नियंत्रण लगाएं जो ब्राह्मण के नाम पर केवल व्यापार कर रहे हैं। उन्होंने जोर दिया कि ब्राह्मण का कार्य धन संग्रह नहीं, बल्कि ज्ञान का प्रचार, धर्म की रक्षा और सत्य का मार्ग दिखाना होना चाहिए।
महाराज ने स्पष्ट किया कि दक्षिणा लेना धर्म का विरोध नहीं है, लेकिन धर्म को व्यावसायिक लाभ का माध्यम बनाना घोर आपत्तिजनक है। उन्होंने लोगों से श्रद्धा को अंधभक्ति में न बदलने और विवेकपूर्ण धार्मिक आचरण अपनाने का आह्वान किया। राजर्षि महंत एकनाथ महाराज ने ऐसे कथावाचकों के बहिष्कार की मांग की जो सनातन धर्म की मर्यादा और गरिमा को धूमिल कर रहे हैं। उनका यह बयान जहां इटावा की घटना में ब्राह्मण समाज के अपमान के विरुद्ध स्वर बनकर उभरा, वहीं धार्मिक पाखंड और व्यावसायिक गतिविधियों पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।