*”हँसी के राजकवि – सुरेंद्र दुबे”*
हमारे दुर्ग छत्तीसगढ़ की धरती का रत्न अनोखा,
कविता में जिसने हास्य को देखा।
नब्ज पकड़ता, श्रोताओं का दिल,
हँसी से भरता था जीवन का सिल।
बेमेतरा की गलियों से उठकर,
विश्वभर में छत्तीसगढ़ का परचम लहराने वाला l
कभी ‘मिथक मंथन’ में गहराई लाता,
कभी चुटकुलों में देश को हँसाता।
हाथ में चुटकी, शब्दों में ताना,
पर व्यंग्य में भी प्यार का पैमाना।
नेता, अफसर, साधू-संत,
सब हँस पड़ते थे बन जाते संत।
“टेंशन में मत रहना बाबू” जब बोला,
देश ने माना, हँसी है अनमोल तोहफा खोला।
कोविड में भी वो डर को हराता,
हँसी से एंटीबॉडी बनाना सिखाता।
कभी आयुर्वेद के पाठ पढ़ाए,
कभी कवि सम्मेलनों में मंत्र सुनाए।
संजीवनी बन जाए उसकी कविता,
मंच पर गूंजे ‘जय हो सुरेंद्र दुबे का’।
“पद्मश्री” भी झुका उसके पास,
जब हास्य में मिला सामाजिक विश्वास।
“सवाल ही सवाल है” का कवि,
जवाब बन गया, जब हँसी ने लिखी लिपि।
राजनीति में भी कदम रखा,
पर मंच न छोड़ा, कविता का रथ न रुका।
अमित शाह तक मुस्काए उसकी बात पर,
हँसी के पीछे थी सोच हर बात पर।
फिर एक दिन वो मंच छोड़ गया,
दर्शकों का प्रिय कवि रायपुर में मौन हो गया।
दिल की धड़कन रुक गई थी सही,
पर उसकी कविता आज भी ज़िंदा रही।
हर हँसी में बसता उसका अंश है,
सुरेंद्र दुबे – हँसी का पंच है।
छत्तीसगढ़ का वो गौरव, जनगाथा बना,
हँसी के महाकाव्य में अमरता तना।
*🙏🏻डॉ. सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि*
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग छत्तीसगढ़