*समय बदला है…मूल्य नहीं — एक माँ की पीड़ा और समझ*
“मम्मा, आपके समय में तो कोई कॉम्पटीशन ही नहीं था… अब ज़माना बहुत बदल गया है!”
ये शब्द मेरे 14 और 11 साल के बच्चों ने जब मुझसे कहे, तो मैं मुस्कराई, लेकिन मन के किसी कोने में कुछ टूट सा गया।
हद तो तब हुई जब मेरे बच्चों ने आपस में खुद को भी अलग generation का बताया l मैं तो हैरान रह गयी l
हाँ, ज़माना बदला है। तकनीक ने जिंदगी को तेज़ और सुविधाजनक बना दिया है। बच्चों के पास आज बेहतर मोबाइल, इंटरनेट, ऑनलाइन कोचिंग, AI टूल्स और हर सवाल का जवाब एक क्लिक पर मौजूद है। लेकिन क्या इस सुविधा ने संघर्ष को पूरी तरह खत्म कर दिया है? या फिर संघर्ष का रूप बदला है?
हमारे समय में जब हम स्कूल जाते थे, बस्ता हाथ में होता था, मोबाइल नहीं ।
सब कुछ क्लास में कॉपी पर कराया जाता था, आजकल तो WhatsApp ग्रुप में pdf शेयर कर दिए जाते हैं l
रोज डायरी चेक की जाती थी कि टीचर ने क्या लिखकर भेजा है, छुट्टी है या नहीं, पर आजकल सब कुछ app पर update किया जाता है l
खेल मैदानों में होते थे, न कि स्क्रीन पर। टीवी एक कमरे में था और उसका रिमोट ‘पापा’ थे। हमारे सपने छोटे थे, पर उन्हें पाने का जुनून बड़ा था।
आज के बच्चों के पास हर सुविधा है — लेकिन उनके तनाव भी बड़े हैं। नंबर लाने का दबाव, सोशल मीडिया की तुलना, और ‘परफेक्ट’ बनने की दौड़ उन्हें एक अदृश्य बोझ तले दबा रही है l
जब बच्चे कहते हैं, “आप नहीं समझेंगी”, तो शायद वे यह भूल जाते हैं कि हमने भी अपने समय के संघर्ष झेले हैं — अलग तरह के सही, लेकिन उतने ही सच्चे। हमने रिश्तों को सहेजा, त्याग सीखा, सीमित साधनों में सपने पाले और उन्हें जीने की कोशिश की।
हमारे पास इंटरनेट नहीं था, लेकिन जज़्बा था। गूगल नहीं था, लेकिन दादी-नानी की कहानियाँ थीं। हम भी असफल हुए थे, रोए थे, पर फिर से खड़े होना सीखा।
जनरेशन गैप तब तक एक दीवार है, जब तक हम उसे पुल नहीं बनाते। बच्चों की दुनिया को समझने की कोशिश करें, लेकिन उन्हें भी यह सिखाना ज़रूरी है कि भावनाओं की भाषा और मूल्यों का अर्थ समय के साथ नहीं बदलता।
सम्मान, धैर्य, संघर्ष, मेहनत, सच्चाई — ये मूल्य न तब पुराने थे, न अब होंगे।
माँ होने के नाते मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चे यह समझें कि तकनीक और प्रतिस्पर्धा भले बदल गई हो, पर माँ की ममता, उसकी चिंता, और उसके अनुभवों की गहराई कभी “पुरानी” नहीं होती।
मुझे ‘पुराना’ कहने से पहले, एक बार मेरी आँखों में देखो — वहाँ आज भी तुम्हारे लिए वही प्यार, वही समझ और वही इंतजार है… जो मेरी माँ की आँखों में मेरे लिए था।
अप्रकाशित
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग छत्तीसगढ़