अयोध्या में संपन्न हुई स्वामी शंकरानंद महाराज की सात दिवसीय श्रीरामकथा

 

महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या । रामनगरी अयोध्या की पुण्यभूमि पर स्वामी शंकरानंद महाराज की सात दिवसीय श्रीरामकथा का भव्य और श्रद्धापूर्ण समापन हुआ। इस धार्मिक अनुष्ठान में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और प्रभु श्रीराम के आदर्शों व मर्यादाओं से ओतप्रोत कथा का श्रवण कर आत्मिक शांति प्राप्त की। कथा के अंतिम दिन भक्ति और श्रद्धा का अनुपम संगम देखने को मिला, जहाँ भक्तगण घंटों पूर्व ही आयोजन स्थल पर पहुँच चुके थे। स्वामी शंकरानंद महाराज ने अपने समापन उद्बोधन में अयोध्या की पावन भूमि पर कथा कहने को अपना सौभाग्य बताया। उन्होंने कहा कि लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व भगवान श्रीराम ने इसी भूमि पर जन्म लिया था और वे केवल भारत ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए मर्यादा, आदर्श और धर्म के प्रतीक हैं।
स्वामी जी ने रामायण को केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक पारिवारिक जीवनशैली का दर्पण बताया, जो हमें रिश्ते निभाने, धर्म का पालन करने और समाज में मर्यादापूर्वक जीने की शिक्षा देता है। उन्होंने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि युवा वर्ग रामायण, गीता और भागवत जैसे ग्रंथों से कटता जा रहा है। उन्होंने सरकार से अपील की कि इन ग्रंथों को शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ा जा सके और उनका नैतिक विकास हो सके। स्वामी जी ने बचपन से ही बच्चों को स्वास्तिक भावना, साधना और धर्म के मूल तत्वों की शिक्षा देने पर जोर दिया, जिससे समाज अधिक सुदृढ़ और संस्कारित बन सके। यह सात दिवसीय श्रीरामकथा श्रीमद्भागवत प्रचार परिषद के तत्वावधान में आयोजित की गई थी। परिषद पिछले 15 वर्षों से प्रति वर्ष दो बार भारत के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर ऐसे भव्य धार्मिक आयोजनों का संचालन करती आ रही है, जिनमें हजारों भक्तगण धर्म और भक्ति से जुड़ते हैं।