एक सोच,बदलाव की ओर

मुझे लगता है कि एक शहीद की पत्नी को विधवा नहीं वीरबधु कह कर सम्मानित किया जाना चाहिए l लेकिन इससे मेरे मन में ये खयाल आया कि सिर्फ शहीद की पत्नी को ही क्यूँ अगर हर विधवा औरत को वीरवधु कहा जाए तो उसकी सोच में कितना आशावादी परिवर्तन हो सकता है l

 

आप सभी को पता ही होगा कि जिस स्त्री का पति भगवान के धाम चला जाता है उस स्त्री के नाम के आगे विधवा शब्द जोड़ा जाता है l पुरुष के नाम के साथ भी विधुर जोड़ दिया जाता है पर समाज सिर्फ महिलाओं के बारे में ही इस शब्द का ज्यादा प्रयोग करता है, जिससे लोगोँ का नजरिया उस महिला के प्रति बेबसी और लाचारी महसूस कराने वाला होता है l

 

एक शब्द उसको हिम्मत दे सकता है, आशावादी बना सकता है और लोगोँ की सोच में बदलाव ला सकता है l

मेरा मानना है कि विधवा होना कोई दुर्भाग्य नहीं है,

ये व्यक्तिगत मामला नहीं है,

ये मृत्यु लोक है,

एक दिन सबको ही जाना है,

जितने दिन के लिए साथी आता है, रहता है और चला जाता है, इस पर किसी का बस नहीं,

तो फिर सिर्फ महिलाओं को इस शब्द का उत्पीडन क्यु?

 

अगर हम सब मिलकर किसी भी महिला को, जिनका पति गुजर गया है, विधवा नहीं *वीरवधु* सम्मान से उद्बोधन और अलंकृत करें तो समाज में महिलाओं की स्थिति से पहले से ज्यादा सुधार हो सकता है और लोगों की मानसिकता आशावादी हो सकती है..

आपको क्या लगता है,

अपनी राय अवश्य दीजियेगा 🙏🏻

 

(ये मेरे अपने विचार हैं)

 

एक सोच

एक कदम बदलाव की ओर

धन्यबाद

नेहा वार्ष्णेय

दुर्ग छत्तीसगढ़