फर्ज का कर्ज उतार रहा,
अपने ही मुंह मोड़ रहे।
प्रेम अब बिल्कुल न रहा,
अपनापन अब यूं छूट रहा।
न चाहते रिश्ते हट रहे,
जीवन भी अब कराह रहा।
जीने की चाह जो न रही,
ज़िंदगी बस यूं तड़पा रही।
दर्द की गहराई में डूब रहा,
आंसू मेरी आंखों में जम रहे।
धड़कनें अब बेकार हो हो रही,
जिसे माना वो ही ठुकरा रहा।
अब बस अकेला ही रह रहा,
मेरा कुछ मेरा तक न रहा।
मौत के मुहाने पर खड़ा रहा,
पर मृत्यु अब न आ रही।
जीवन की सांसें थम रही,
पर मौत अब न आ रही।
पर जीने की चाह न रही,
बस जीना मुश्किल हो रहा।
जीवन की हर खुशी जा रही,
मै बस एक याद बन रहा।
दिल की गहराई में दर्द छा रहा,
आंसू मेरी आंखों में जम रहे।
जीवन मुझको न अपना रहा,
बस मुझको यूं ही ठुकरा रही।
दिल के टुकड़ों को समेट रहा,
शूल की भांति मुझे ही चुभ रहे।
प्रेम की यादें दर्द बन रही,
धड़कनों भी साथ न दे रही।
प्रेम भी अब अपना न रहा,
सखा का साथ भी छोड़ रहा।
उसकी यादों में बस खोया रहा,
अब वो जुदा जो हो रही।
मृत्यु अब न आ रही,
जीवन भी नहीं जीने दे रहा।
स्वरचित एवं भावपूर्ण
मुकेश कविवर केशव सुरेश रूनवाल