13 जून 2025 की शाम, जब अहमदाबाद की गलियों में अफरा-तफरी और भय का माहौल था, एक घटना ने पूरे देश के दिलों में आस्था की लौ जगा दी। एक भीषण बम विस्फोट ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया—दुकानें जल गईं, घर मलबे में तब्दील हो गए, और कई मासूम ज़िंदगियाँ चपेट में आ गईं। लेकिन उसी राख और धुएँ के बीच, कुछ ऐसा सामने आया जिसने सबको स्तब्ध कर दिया—एक जलती हुई इमारत की ढही हुई दीवारों के बीच भगवद्गीता की एक प्रति पूरी तरह सुरक्षित पाई गई, बिना किसी जलन या खरोंच के।
यह कोई साधारण पुस्तक नहीं, बल्कि एक प्रेरणा की प्रतीक थी। जिस स्थान पर सब कुछ राख में बदल गया, वहाँ भगवद्गीता का यूँ अक्षत रहना न केवल एक चमत्कारिक दृश्य था, बल्कि एक संदेश भी—कि सत्य, धर्म और आस्था की शक्तियाँ कभी नष्ट नहीं होतीं।
यह केवल संयोग नहीं, यह संकेत है…
ऐसे समय में जब मानवता को निराशा और अराजकता ने घेर लिया हो, यह घटना हमें पुनः याद दिलाती है कि हमारे भीतर का “धर्म”, “कर्तव्य” और “न्याय” का भाव कभी मरा नहीं है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था:
(इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती)l
क्या यह संभव नहीं कि वही दिव्य चेतना जिसने गीता के ज्ञान को सहस्त्राब्दियों से जीवित रखा है, आज भी उसकी रक्षा कर रही है?
अहमदाबाद के उस स्थान पर अब लोग दीप जलाने लगे हैं, फूल चढ़ा रहे हैं, और भगवद्गीता के उस प्रत्यक्ष चमत्कार को नमन कर रहे हैं। न केवल हिंदू श्रद्धालु, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इसे एक अलौकिक संकेत के रूप में देख रहे हैं—मानवता को जोड़ने वाला संदेश, जो हर मज़हब से ऊपर है।
यह घटना एक प्रेरणा है कि जब सब कुछ नष्ट हो जाए, तब भी ‘शाश्वत सत्य’ अडिग रहता है। गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि संघर्ष में स्थिरता, अंधकार में प्रकाश, और संकट में साहस का मार्गदर्शक है।
इस घटना ने हमें यह स्मरण कराया कि
जब मनुष्य अपने कर्तव्यों से विचलित होता है, तब दिव्यता स्वयं प्रकट होकर उसे जगाने आती है।
अहमदाबाद की इस राख से निकली भगवद्गीता, न केवल एक किताब है—वह एक ज्वाला है, जो यह बताती है कि धर्म कभी जलता नहीं, वह हमेशा उजाला करता है।
🙏 जय श्रीकृष्ण।
नेहा वार्ष्णेय (लेखिका)
दुर्ग छत्तीसगढ