विषय : *”छल से रचा साहित्य – ना शब्द, ना सत्य”*
दिनाँक: 14/06/2025
इस विषय को मैं *नेहा वार्ष्णेय* एक युवती के दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रही हूं। यह कहानी उस छल, झूठ और दिखावे को उजागर करती है जो साहित्य, मीडिया और प्रसिद्धि के मोह में लड़कियों को फँसाता है।
कहानी: “अंजलि और आभासी दुनिया का लेखक”…
अंजलि एक छोटे शहर की होनहार लड़की थी। शब्दों से उसका बचपन से रिश्ता था — डायरी में कविताएँ लिखना, कॉलेज मैगज़ीन में छपना और मंच पर बोलना उसे सबसे ज्यादा प्रिय था। उसका सपना था – एक दिन उसकी रचनाएँ अखबारों में छपें, लोग उसके शब्दों को पहचानें, और वह किसी एफएम रेडियो पर अपने विचारों की आवाज़ बन जाए।
एक दिन सोशल मीडिया पर उसकी एक कविता वायरल हो गई। कई लोगों ने तारीफ की, लेकिन एक खास नाम ने उसकी दुनिया ही बदल दी — विवेक मल्होत्रा।
विवेक खुद को एक नामी लेखक, मीडिया कंसल्टेंट और एफएम चैनल के कंटेंट हेड के रूप में पेश करता था। उसके प्रोफाइल में बड़े-बड़े नामों के साथ फोटो, वीडियो इंटरव्यू, पुरस्कार समारोह की क्लिप्स थीं। उसने अंजलि को मैसेज किया —
“तुम्हारे शब्दों में आग है, मैं तुम्हें मंच दूँगा। तुम्हारी कविता अगले रविवार को हमारे पेपर में छपवाता हूँ। एफएम चैनल पर शो भी मिलेगा। बस, भरोसा रखना।”
अंजलि पहली बार खुद को ‘देखी जा रही’ महसूस कर रही थी। उसे लगा दुनिया उतनी ही अच्छी है, जितनी वो खुद l अपने सपनों को सामने आते देखा और धीरे-धीरे वह विवेक की बातों पर पूरी तरह विश्वास करने लगी।
विवेक ने उसे वीडियो कॉल पर अपने “स्टूडियो” दिखाए — जिनमें रिकॉर्डिंग चल रही थी, मीटिंग्स होती थीं। अंजलि से बड़ी बड़ी बातें, कभी शॉर्ट इंटरव्यू जैसे झूठे वादे दिखाकर उसने उसका आत्मविश्वास खरीद लिया।
वह कहने लगा:
“तुम्हें मेरे साथ काम करना है तो कुछ शर्तें माननी होंगी, अपनी आवाज को बुलंद करना होगा, तौर-तरीकों पर काम करना होगा, मेरी बात माननी पड़ेंगी, मुझे खुश रखना होगा, ।”
अंजलि उसकी बातों में उलझती चली गई। उसने कुछ वीडियो बनाए, इंटरव्यू क्लिप्स की रिहर्सल की, उसकी टीम से मिली l
उसने विश्वास जीतने के लिए उसके कुछ काम भी बनवाए , कुछ बड़े और काबिल लोग हैं, कहकर बात भी कारवाई l
पर न एफएम शो शुरू हुआ और ना ही कुछ प्रोजेक्ट पर काम हो रहा था l
और फिर, एक दिन अंजलि को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट दिखी — जिसमें उसने एक ऐसी लड़की की पोस्ट देखी, जिसे वो अपने परिवार की बता रहा था, और भी कुछ वीडियो थी, जिसे वो खुद की बताता था l
अंजलि की आँखें खुलने लगी। पर फिर भी उसने धैर्य से काम लिया, चुपचाप और सबूत ढूँढने लगी l उसके बाद उसकी सारी पोल खुलने लगी, पर भोली अंजलि को उसके मान लेने के बाद ही उस पर यकीन हुआ l
उसे समझ में आ गया था कि प्रसिद्धि की भूख में वह एक ऐसे आदमी के जाल में फँसी जो खुद को लेखक कहता था, लेकिन असल में शब्दों का सौदागर और गलत इंसान था।
अंजलि खुद को इस दलदल से बाहर निकालना चाहती थी l
शुरू में उसको बहुत परेशानी हुई, उसका आत्मविश्वास भी डगमगाया, इस झूठे जाल से निकलने में उसे समय लगा l उसे सही लोगोँ पर भी भरोसा करने में दिक्कत होने लगी l
अंजलि बहुत ही बहादुर और स्वाभिमानी लड़की थी, अब अंजलि ने एक निर्णय लिया , वह केवल वो लिखेगी जो उसने जिया है। न छल, न दिखावा। चाहे कम काम मिले पर वो किसी के बहकावे में नहीं आएगीl
उसका अगला कविता संग्रह आया…
*”ना शब्द, ना सत्य — उस झूठे साहित्य की कथा”*
जो आज हज़ारों लोगोँ को यह सिखाता है कि प्रसिद्धि की दौड़ में सबसे बड़ी ताकत है – सत्य और आत्म-सम्मान।
संदेश:
इस कहानी के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि जब साहित्य, प्रसिद्धि और सफलता का मार्ग छल, झूठ और दिखावे से होकर गुजरता है, तो वह सिर्फ शब्दों को ही नहीं, इंसानों की आत्मा को भी घायल करता है। अंजलि की कहानी उन लाखों लोगोँ खासकर महिलाओ की कहानी है जो सपनों की चमक में छले जाते हैं।
छल से रचा गया साहित्य शायद कुछ लोगों को temporarily चमका दे, लेकिन सच्चे साहित्यकार वही होते हैं जो अपने घावों को शब्दों में ढालते हैं — बिना दिखावे, बिना डर के l
स्वरचित
नेहा वार्ष्णेय
दुर्ग (छत्तीसगढ़)