चंदौसी उत्तर प्रदेश की माटी से निकली, छत्तीसगढ़ में पहचान बनाती…नेहा वार्ष्णेय  

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चंदौसी उत्तर प्रदेश की माटी से निकली, छत्तीसगढ़ में पहचान बनाती…नेहा वार्ष्णेय

से हुई खास वार्ता के आधार पर

इनका नाम नेहा वार्ष्णेय “धारा” है। इनका जन्म 1983 (ईस्वी) को हुआ था। ये ध्रुव नंदन एवं उमा नंदन की संतान हैं। ये दुर्ग (छत्तीसगढ़) की निवासी हैं। इन्होंने महात्मा गांधी ज्योतिवाफुले विश्वविद्यालय से एम ए अँग्रेजी साहित्य और सिक्किम मनिपाल विश्विद्यालय से एम सी ए की पढ़ाई की हैं।

फिलहाल ये श्री मदभगवद्गीता में एम ए कर रही हैं. ये लगभग 3 वर्षों से लिख रही हैं इन्होंने अपनी पहली रचना का सृजन 2022 (ईस्वी) में किया था। ये अपनी एक किताब *बदल रही हूँ, शौक की उम्र में सब्र सिखाती* जिंदगी भी 2024 में पब्लिश करा चुकी है. ये अब तक कई रचनाओं का सृजन कर चुकी हैं। इनके अनुसार *”लेखन एक ऐसा माध्यम है जो लेखक के मन के भाव को शब्दों की माला में पिरो देता हैं “। ये एक motivational speaker भी है जिन्होंने covid के दौरान कई लोगोँ की emotional मदद की. इनका मानना है कि ” *मानव जीवन मिला है तो मजा मस्ती के साथ भक्ति भी करनी चाहिए* इनकी मनपसंद लेखिका /कवयित्री / मीराबाई और सूरदास हैं। इनकी मनपसंद रचना “श्री मद भगवद्गीता है” जिसने इनके जीवन में बहुत आशावादी बदलाव लाएं और कई प्रश्नों के जवाब मिले। इन्हें कहानी और कविता पढ़ना अत्यंत पसंद हैं। इन्हें गद्य और पद्य विधा में लिखना पसंद हैं। ये हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में रचनाओं का सृजन करती हैं। इनके द्वारा सृजन की हुई इनकी मनपसंद रचना *मैं कौन हूं*, *प्रेम*, *गीता का सार* *नारी* हैं। ये अब तक अनेक कवि सम्मेलनों में जुड़कर उसकी शोभा व गरिमा बढ़ा चुकी हैं । ये नव चेतना दोहा कतर, अस्तित्व पब्लिकेशन, सत्य साहित्यिक गंगा एवं कई मंचों से जुड़ी हैं और अपना काम कर रही हैं। अब तक इनके अनेक साँझा संकलन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इन्हें अब तक अनेक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

अपने बच्चों और परिवार के लिए अपना कैरियर छोड़ दिया, ताकि उनकी परवरिश में कोई कमी ना रहे, जब वो थोड़े बड़े हुए तब कोविद के दौरान खुद पर मेहनत की और अपने सपनों को उड़ान दी. उनका कहना है कि अभी बहुत कुछ पाना बाकी है,

अभी तो पूरा आसमाँ अपना बनाना बाकी है, सपने सपनों में रंग भरना बाकी है l

नेहा वार्ष्णेय के अनुसार, “मुझे खुशी होती है जब मेरे पापा मेरी कामयाबी से खुश होते हैं और अखबार तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मेरा नाम, लेख पढ़ते हैं l उनकी खुशी उनकी आँखों की चमक ही मेरी कामयाबी है l

मैं तक की अपनी सारी उपलब्धियां अपने माता-पिता और सास ससुर के श्री चरणों में अर्पित करती हूं.”

नेहा वार्ष्णेय ये मानती हैं कि

आज मैं जो हूं खुद की मेहनत और दोस्तों के support से हूं…उनका कहना है कि मैं हमेशा खुशकिस्मत रही कि मुझे अच्छे लोगोँ का साथ मिला जिससे वो आगे बड़ी,तथा प्रभु कृपा से कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा.

नेहा वार्ष्णेय आध्यात्मिक इंसान हैं, श्रीमद भगवद्गीता पढ़ना, तथा भजन गाना उनकी रुचि है ,वो स्वयं भी गीता क्लास लेती है और सभी को गीता पढ़ने और आत्मसात करने के लिए प्रेरित करती हैं l

उनका मानना हैं कि

“मैं कृष्णा follower हूं, और उनको किए समर्पण से ही आज यहां तक पहुची हूं.

वर्ना शायद मेरी कोई योग्यता नहीं