
सरेराह पकड़ा गया डांटा गया रपटा गया
वह चोर गलतियों का पुलिंदा है
भूख से व्याकुल पेट पीठ से चिपका
अनजानी खता से बेसुध
मासूम कोई परिंदा है
मेरे दिल की हसरतें क्या फिर भी जिंदा हैं
ऊंची उड़ानों की नाकाम पैमाइशे हैं
जिंदा हसरतों की लाचार आजमाइशे हैं
एक रोटी से दबी हजार ख्वाहिशें हैं
मुस्तकबिल बे रास्ता करने की कहीं तो साजिशें हैं
क्या अब भी नहीं इंसानियत शर्मिंदा है
मेरे दिल की हसरतें क्या अभी जिंदा हैं
छोटी सी उम्र छटपटाते से ख्वाब हैं
न ज्यादा की चाहत न थोड़े से ऐतराज है
जिंदगी की दौड़ में खोया हुआ आफताब है
रोशनी से दूर वह नूर ए महताब है
तरसती नजरों में तलाशती उम्मीद की किरण
या खुदा तेरा इंसाफ भी लाजवाब है
भूख और बर्दाश्त में जीतती मजबूरी का फंदा है
मेरे दिल की हसरतें क्या फिर भी जिंदा हैं
दुनियावी किताब का ये खाली पन्ना हैं
मैली कमीज सूखे होंठ नंगे पांव
ये कब किसी की तमन्ना है
इक अदद कागज और कलम
नन्हे हाथों का गहना है
जीत की गुहार में कामयाबी के कदमताल में
एक कदम आगे बढ़ना है
निगाहे करम जरा हाथ बढ़ाइए
ये नन्हा दीपक तुम्हारे ही शहर का बाशिंदा है
मेरे दिल की हसरतें हां अभी भी जिंदा हैं
*________________ प्रज्ञा शुक्ला वृन्दा*
*मुस्तकबिल_ भविष्य*