ग़ज़ल
इस ज़माने मे प्यार कौन करे।
अब भला इंतज़ार कौन करे।।
प्यार का हक़ अदा मैं कर दूंगा।
प्यार मेंअब उधार कौन करे।
अब ज़माना बहुत सयाना है।
अपनों पे जा निसार कौन करे।।
मां की बाहों में झूलता था सदा।
मां के जैसा दुलार कौन करे।।
जो सुधरते नहीं है कहने पर।
उनका हर्षित सुधार कौन करे।
विनोद उपाध्याय हर्षित