अच्छा हुआ कि जिंदगी दुत्कारती रही,

अपनी बहुत पुरानी 3 ग़ज़लों के चंद शेर याद आ रहे थे तो सोचा आप तक पहुचा दूं, अगर शेर पसंद आया तो आप की दुआएं चाहता हूं—

(1)
हम मसनदे शाही से अगर डर गए होते,
मक़तल तलक़ झुकाए हुए सर गए होते।

अच्छा हुआ कि जिंदगी दुत्कारती रही,
करती जो हम से प्यार तो हम मर गए होते।

अच्छा हुआ के रुक गए आगे नहीं बढ़े,
वरना तेरे बाज़ू से तेरे पर गए होते।

(2)
इकरार ना तुम करते इनकार किया होता,
गर प्यार था मुझ से तो इज़हार किया होता।

मिट्टी का मेरा घर था क्यों तुमने गिरा डाला,
परदा जो ज़रूरी था दीवार किया होता।

ताक़त की नोमाइश में तलवारें बहुत आईं,
कुछ फैसला हो जाता गर वार किया होता।

(3)
रखते नहीं तमीज़ जो ऊँची उड़ान की,
कमीयाँ गिना रहे हैं वही आसमान की।

बारूद बो रहे हैं अब उस सरज़मीं पे लोग,
खेती महक़ रही थी जहां जाफरान की।

करना अगर है आप को भी शेर का शिकार,
उचाईयां बढ़ाइये अपने मचान की।

नदीम अब्बासी “नदीम”
गोरखपुर।