🌹🌹 *ओ३म्* 🌹🌹
*उपनयन संस्कार*
संस्कारों की श्रृंखला में ये दशवां संस्कार है।इस संस्कार अन्य नाम *जनेऊ संस्कार,यज्ञोपवीत संस्कार,उपवीती संस्कार,ब्रह्मोपवीती संस्कार, ,व्रतबंध संस्कार* भी कहा जाता है।
🪔 *संस्कार उद्देश्य*🪔
*[१]* इस संस्कार द्वारा मानव को द्विज बनाना है।पहला जन्म माता-पिता द्वारा प्राप्त होता है।दूसरा जन्म आचार्य द्वारा यज्ञोपवीत देकर धर्मज्ञ बनाना है।
*[२]* बालक को यज्ञोपवीत देकर विद्याप्राप्ति के लिए गुरुकुल भेजना।
*[३]* पितृ ऋण(माता-पिता) के प्रति कर्तव्य कर्मों का निर्वाहन।
*[४]* देव ऋण अर्थात् जिन आचार्यों,विद्वानों,उपदेशकों,वानप्रस्थी व सन्यासियों द्वारा हमें विद्या का दान व सदाचार की शिक्षा दी जाती हैं उनके प्रति कृतज्ञता।
*[५]* ऋषि ऋण अर्थात् जिन ऋषियों के पुरुषार्थ व कृपा से हमें *ईश्वरीय वाणी वेद* ज्ञान प्राप्त हुआ।आज भी हो रहा है।हमें उन वेदों को *पढ़-पढ़ाकर* आगे बढ़ाते रहना।
हमारी संस्कृति को *विश्ववारा संस्कृति* कहा जाता है।
🌼 संस्कार परिचय 🌼
स्वनाम धन्य स्व० निर्भय मुनि जिन्होंने संपूर्ण जीवन वैदिक संस्कृति के लिया जिया।न केवल स्वयं अपितु परिवार को भी उसी सांचे ढाला।
उनकी दूसरी पीढ़ी में स्व० शिवशंकर दूबे व श्रीयुत गिरजाशंकर दूबे जी इस पथ पर बराबर चल रहे हैं।
तीसरी पीढ़ी में * प्रियवर राजेश दूबे,प्रियवर वृजेश दूबे भी वेद पथ पर चल कर सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
इसी क्रम में आज तीसरी पीढ़ी में श्रीयुत गिरिजा शंकर दूबे *प्रधान आर्य समाज लालगंज* के सुपुत्र *ब्रह्मचारी अभिषेक* का यज्ञोपवीत पूर्ण *वैदिक विधि विधान* से सम्पन्न हुआ। इस संस्कार में *पंडिता रुक्मिणी शास्त्री* ने संस्कार कर्म में वेदपाठ किया!
इस अवसर पर भारी संख्या में *पौराणिक हिंदू परिवारों* ने प्रतिभाग किया और *वैदिक कालीन सोलह संस्कारों* से परिचय प्राप्त किया। इन्हीं संस्कारों के बल पर कभी *भारत का विश्व गुरु* का स्थान प्राप्त था।
संस्कारों के कुछ *चलचित्र व कतिपय छायाचित्र अवलोकनार्थ व प्रेरणार्थ* प्रेषित किये गये हैं।
*आचार्य सुरेश जोशी*