भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर कथा व्यास डॉ मनोज मोहन शास्त्री ने कहा परमात्मा के सानिध्य में आने से जीव मात्र के कष्टों का समन होता है

महेन्द्र कुमार उपाध्याय
अयोध्या। चक्रवर्ती महाराज दशरथमहल के अन्नत श्री विभूषित बिंदु गद्याचार्य के सानिध्य में चल रही 7 दिवसीय श्री राम कथा के दूसरे दिन कथा व्यास डॉ मनोज मोहन शास्त्री ने कहा कि परमात्मा के सानिध्य में आने से जीव मात्र के कष्टों का समन होता है। भगवान की कथा वही है जो हमारे पूज्य संतों ने लिपिबद्ध किया है, पर इसको जितनी बार सुनी और सुनाई जाय वह नवीन प्रेरणा देती है। कथा व्यास ने लीलाओं का गान करते हुए कहा कि जब-जब धरती पर अधर्म का बोल बाला होता है तब-तब भगवान का किसी न किसी रूप में अवतार होता है। जिससे असुरों का नाश होता है, और अधर्म पर धर्म की विजय होती है। भगवान चारों दिशाओं के कण-कण में विद्यमान है। इन्हें प्राप्त करने का मार्ग मात्र सच्चे मन की भक्ति ही है।
उन्होंने कहा कि भगवान सर्वत्र व्याप्त है, प्रेम से पुकारने व सच्चे मन से सुमिरन करने पर कहीं भी प्रकट हो सकते हैं। इसलिए कहा गया है हरि व्यापक सर्वत्र समाना। आगे व्यास जी ने कहा कि निरगुण से सगुण भगवान सदैव भक्त के प्रेम के वशीभूत रहते हैं, भक्तों के भाव पर सगुण रूप लेते हैं। जब-जब होये धर्म की हानि, बढर्हि असुर अधर्म अभिमानी, तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा। धर्म व सम्प्रदाय में अंतर को समझाते हुए डॉ मनोज मोहन शास्त्री जी ने बताया कि धर्म व्यक्ति के अन्दर एकजुटता का भाव पैदा करता है वहीं सम्प्रदाय व्यक्ति को बाहरी रूप से एक बनाता है। मानव को एकजुटता की व्याख्या करते हुए श्री व्यास जी ने कहा है कि “एक पुस्तक एक पूजा स्थल एक पैगम्बर एक पूजा पद्धति ही व्यक्ति को सीमित व संकुचित बनाती है। जबकि ईश्वर के विभिन्न रूपों को विभिन्न माध्यमों से स्मरण करना मात्र सनातन धर्म ही सिखाता है।” ईश्वर व पैगम्बर में अंतर को बताते हुए कहा कि ईश्वर के अवतार से असुरों का नाश होता है। अधर्म पर धर्म की विजय होती है। यह अद्भुत कार्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एवं भगवान श्री कृष्ण ने अयोध्या व मथुरा की धरती पर अवतार लेकर दिखाया। दोनों ने असुरों का नरसंहार करके धर्म की रक्षा की।