जितेन्द्र पाठक
संतकबीरनगर क्षेत्रीय अधिकारी इफ़को अमित पटेल (उर्वरक विभाग) ने सहज और सरल तरीक़े से जीवन जीने के संदर्भ में एक साक्षात्कार में महत्वपूर्ण सुझाव दिए
उन्होंने बताया मनुष्य के अधिकांश कष्ट इच्छाओं से जुड़े होते हैं। इच्छाएं प्रायः दूसरों के साथ तुलना से जन्म लेती हैं। वास्तव में, अपने जीवन की दूसरों से तुलना ही अप्रासंगिक है। जीवन की अधिकांश उलझनों का आधार तुलना करने की यही प्रवृत्ति है। प्रकृति और पशु-पक्षियों में कोई तुलना नहीं होती। इस धरा पर केवल हम मनुष्य ही ऐसे हैं, जो स्वयं को दूसरों से तौलते रहते हैं। इसी कारण छोटा, बड़ा व्यक्तित्व करने की कोशिश लगभग हम सभी करते हैं। कई लोग स्वयं को बड़ा नहीं कर पाते तो दूसरों को छोटा करने की कोशिश में लगे रहते हैं कि जब दूसरा छोटा हो जाएगा तो हम उससे बड़े दिखाई देंगे। परंतु ऐसे लोग न स्वयं को बड़ा बना पाते हैं और न दूसरों को छोटा सिद्ध कर पाते हैं, और कभी प्रसन्न नहीं हो पाते हैं ।
ऐसी तुलना का मूल कारण शक्ति की आकांक्षा में निहित है कि कैसे मैं दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली हो जाऊं। हम दूसरों से बड़े हों, यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है। आवश्यक तो यह है कि हम स्वयं से छोटे न हों। भरत, श्रीराम के समान महान नहीं थे, किंतु उनकी महानता यह थी कि वह अपने आप में महान थे। अपने जैसा होने में ही आत्म- गरिमा है। हमें दूसरों के गुणों, उनकी उपलब्धियों का सम्मान तो सदैव करना चाहिए, किंतु बने रहना तो सदा अपने जैसा ही है। दूसरों से तुलना करना एक प्रकार से स्वयं को दुख देना ही है। इसमें हम अपनी विशिष्टताओं का भी आनंद नहीं उठा पाते।
अपने जीवन को अपनी इच्छा के अनुरूप बनाने के लिए हमें परिणामों से ऊपर उठना होगा। खुद का आकलन सिर्फ अपने बनाए हुए मानदंडों के अनुसार किया जाए , न कि अन्य लोगों के अनुसार। किसी की सफलता से ईर्ष्या करने के बजाय उसका उपयोग स्वयं को प्रेरित करने में करना श्रेयस्कर है। अपने प्रयासों की सराहना करें। तभी हम अपने आत्मविश्वास को सशक्त कर अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते जाएंगे। इसीलिए, दूसरों से तुलना करने से बचने में ही भलाई है एक स्वाभिमान व्यक्ति की पहचान है ।