🪷🪷 ओ३म् 🪷🪷
*वाटसप गुरुकुल कक्षा-३*
🍁 पुनरावृत्ति-३ 🍁
दिनांक १६जनवरी से चल रहे ज्ञानकुंभ श्रृंखला का आज १८जनवरी तृतीय सत्र है।कल हमने स्थूल अमैथुनी सृष्टि से मैथुनी सृष्टि तक स्थूल शरीर का वर्णन किया था।आज हम *सूक्ष्म शरीर व कारण शरीर की तीसरी कक्षा में प्रवेश करेंगे!*
🪴🪴 सूक्ष्म शरीर🪴🪴
सूक्ष्म शरीर का निर्माण भी सर्वज्ञ,सर्व्यापक,सर्वसक्तिमान परमात्मा ही करता है।इसे सूक्ष्म शरीर इसलिए कहा जाता है कि ये भौतिक चक्षुओं से नहीं दिखता है।इसे ज्ञान चक्षुओं से योगी देखते हैं। *यह सूक्ष्म शरीर १७,१८,१९ तत्वों का होता है। जिसमें ५ तन्मात्रा +५ ज्ञानेन्द्रियां + ५ प्राण + १ मन + १ बुद्धि = १७ तत्व। जब इसमें चित्त जोड़ते हैं तो यह १८ तत्वों का और जब इसमें अहंकार यानि अंत:करण के चारों भाग जोड़ देते हैं तो यह १९ तत्वों का सूक्ष्म शरीर कहलाता है* ।शास्त्रों में जगह-जगह पर प्रकरणानुसार १७,१८ व १९ तत्वों के सूक्ष्म शरीर का वर्णन आता है खासकर उपनिषदों में ।यह सूक्ष्म शरीर जीवात्मा का आभ्यांतर साधन है।
🪴🪴 कारण शरीर 🪴🪴
कारण शब्द से ही पता चलता है कि यह जीव के जन्म का कारण होने से कारण शरीर कहलाता है। इस प्रकार स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर व जगत का कारण प्रकृति की सूक्ष्म अवस्था कारण शरीर है। *कारण शरीर इसलिए भी है कि जीव इसमें भी सूक्ष्म होने के कारण व्यापक रहता है। सत्यार्थ प्रकाश के नवम समुल्लास में कारण शरीर के बारे में महर्षि दयानंद सरस्वती जी कहते हैं जिसमें सुषुप्ति अर्थात गाढ़ निद्रा होती है*!इसके अतिरिक्त एक तुरीय अवस्था भी होती है।यह योगियों का विषय है इसलिए इस पर चर्चा नहीं करते।
*ज्ञानकुंभ की विशेषता*
हमने जो महाकुंभ की जगह ज्ञान कुंभ लिखा है उसका महत्व अब यहां समझ जायेंगे।जरा ध्यान से स्वाध्याय कीजिएगा!
तीनों शरीर जीवात्मा के साधन हैं।एक उदाहरण से समझें। *एक आदमी प्रयागराज कुंभ में स्नान करने के लिए दिल्ली से अपनी वैगनार गाड़ी से गया! उसने अपनी गाड़ी संगम पर खड़ी की उसे खूब रगड़- रगड़ कर नहलाया। मगर खुद बिना नहाये दिल्ली चला आया! आप और अन्य लोग उसे क्या कहेंगे? मंद बुद्धि कहेंगे? क्योंकि गाड़ी जड़ है।साधन मात्र है।जबकि ड्राईवर यानि गाड़ी चलाने वाला वह यात्री चेतन है नहाना उसे चाहिए था।आप कहेंगे यह आदमी तो निहायत अनपढ़ है जड़ कार को नहलाया।*
ठीक यही बात ज्ञानकुंभ आपको भी समझा रहा है कि *जिस शरीर व मन को आप प्रयागराज की त्रिवेणी में नहलाने जा रहे हैं वो भी कार ही की तरह जड़ है जबकि आत्मा चेतन व निराकार है। जड़ शरीर व मन का नहाना वैगनार गाड़ी कै नहलाने के समान है*
पाप और पुण्य आत्मा करता है और नहलाया जा रहा है शरीर तब सोचो! ठंडे दिमाग से कि पाप-पुण्य करने वाला आत्मा तो नहाता ही नहीं ।नहाता है उसका शरीर तब पाप कैंसे कटेंग?
*एक बात और भी है कि पाप कभी न कटते हैं।न हटते हैं ।न छटते हैं न ही मिटते हैं।पाप व पुण्य भोगने पड़ते हैं।भोगना है आत्मा को और डुबकी लगाता है शरीर!और फिर सोचता है पाप कट जायेंगे ये तो उच्च कोटि की मूर्खता है*।अत: आत्मा को स्नान कराओ! आत्मा का स्नान होता हे ध्यान से। और ध्यान लगता हे ईश्वरीय वाणी वेद ज्ञान से! प्रमाण देखो! *गोस्वामी तुलसी दास* ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है स्वर्णाक्षरों में।
*धरम ते विरति योग ते ज्ञाना।*
*ज्ञान मोक्ष प्रद वेद बखाना।।*
अर्थात् धर्म यानि पदार्थ के गुण-कर्म-स्वभाव को जानने से वैराग्य होता है।योग साधना से ज्ञान होता है।ज्ञान से मुक्ति होती है ये वेदों में कहा है! ओ भोले नर-नारियो मत मानो आचार्य सुरेश जोशी की बात मगर गोस्वामी तुलसी दास की बात तो मानो!भाई!!!
आज की ज्ञानकुंभ स्नान की चर्चा को विराम देते हैं कल प्रांरभ करेंगे दूसरा पदार्थ मन।क्रमश:…….
🏵️ *विशेष सूचना*🏵️
आज की पोस्ट धर्म पत्नी पंडिता रुक्मिणी शास्त्री जी को समर्पित है।क्योंकी आज हम दोनों का *पावन जन्म दिवस* है।
आचार्य सुरेश जोशी
*वाटसप गुरुकुल महाविद्यालय* आर्यावर्त्त साधना सदन पटेल नगर बाराबंकी उ०प्र०