ख़ुदा करे कि नया साल सबको रास आए, ग़म का साया कभी भूले से भी न पास आए, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,


अनुराग लक्ष्य, 1 जनवरी
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी
मुम्बई संवाददाता ।
जिसको गुज़रना होता है वह गुज़र ही जाता है। जी हाँ, साहब 2024 हमसे गुज़र ही गया। आइए हम सब इस्तेकबाल करें 2025 का। इस मुबारक सुबह की शुरूआत में तो कुछ इस तरह ही कहा जा सकता है, कि
,,, खुदा करे कि नया साल सबको रास आए,
ग़म का साया कभी भूले से भी न पास आए।
गुलों के साथ रहें खुशबुओं से महकें सब,
जो भी आए हमारी ज़िंदगी में खास आए ।। ,,,,
लेकिन यह भी सच है कि जो गुज़र गया, वोह अगर आपको एक तरफ खुशियाँ दे गया, तो किसी के सपनों को लहूलुहान भी कर गया, कुछ इस तरह कि,
,,, किसी के ख़्वाब टूटे और कोई हो गया बेघर,
गुज़रते साल ने क्या ख़ूब यह मंज़र दिखाया है ।
कहीं आहो फ़ुगाँ चीखें कहीं मातम के अंगारे,
जिधर देखो उधर कमबख्त ने सबको रुलाया है,,,,,।।
और अगर मैं अपनी बात करूं तो दिल से बस यही सदा आती है कि,
,,,,मुद्दत हुई किसी ने मेरा हाल न पूछा,
गुज़रा है किस तरह यह मेरा साल न पूछा ।
इस दौर ए परेशाँ में भी जो हैं मेरे अपने,
चलती है कैसे तेरी रोटी दाल न पूछा,,, ।।
फिर भी दिल से तो यही दुआ निकल रही है कि इस आने वाले नए साल में,
सबकी दुनिया संवार दे मौला,
दिल में खुशियाँ हज़ार दे मौला।
गम के साए न आएं राहों में,
अपनी रहमत से तार दे मौला।।