अनुराग लक्ष्य, 17 नवंबर
मुम्बई संवाददाता ।
देखा जाए तो शायरी ने हमेशा इंसानियत भाईचारगी और मुहब्बत को आम करने के साथ साथ देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रकृति के सौंदर्य को भी रेखांकित किया है, जो हमारे समाज का अहम हिस्सा भी रही हैं। लेकिन नातिया शायरी ने हमेशा अपने कलाम के ज़रिए अल्लाह और उसके रसूल की मुहब्बत और अज़मत को बखूबी ज़माने के सामने रखा है। आज ऐसे ही कुछ नातिया कलाम को लेकर मैं सलीम बस्तवी अज़ीज़ी आपके सामने रु बरु हो रहा हूं।
/1 इश्क़ ए अहमद में दिल जो जलाओगे तुम,
मोमिनों खुल्द में घर बनाओगे तुम।
नात कहने का फन जो तुम्हें आ गया,
मिस्ल ए सूरज यहां जगमगाओगे तुम ।।
2/ मेरा कशकोल है खाली भरेगा कब मेरे आका,
क़दम तैबा की जानिब यह बढ़ेगा कब मेरे आका ।
मेरे आका मुझे इतना बता दीजिए मेरे दिल को,
यह मेरे अश्क़ का बहना थमेगा कब मेरे आका ।।
3/ मेरे मौला तेरी रहमत का तलबगार हूं मैं
हां यह सच है कि सरापा ही गुनाहगार हूं मैं ।
मैंने माना कि गुनाहों के हैं दफ्तर काले,
बख्श दे मौला मुझे तेरा खतावार हूं मैं ।।
4/ कसम खुदा की मदीना बसा है आँखों में,
नबी ए पाक का रौज़ा सजा है आँखों में ।
कभी तो होगा उनका ख़्वाब में दीदार मुझे,
इसी उम्मीद पे सब कुछ थमा है आँखों में ।।
,,,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,,,