*पहले कौन?आत्मा या परमात्मा!* आचार्य सुरेश जोशी

🦩 ओ३म् 🦩
*पहले कौन?आत्मा या परमात्मा!*
आपने क ई बार लोगों को यह कहते सुना होगा कि अभी मेरे पास *यज्ञ,योग,संध्या,सत्संग ,सेवा,दान,परोपकार* का समय नहीं है। *पहले आत्मा फिर परमात्मा!* क ई आस्तिक लोग समझते हैं कि यह गलत कह रहा है।अभी ना समझ है।जब अकल आ जायेगी तब पता चलेगा। क ई लोग सोचते हैं कि सही कह रहा है जब आत्मा ही दुखी,अतृप्त है,अशांत,दीन-हीन है तो भजन में मन ही नहीं लगेगा! और अपनी बात को सही ठहराने के लिए कहते हैं *भूखे भजन न होय गोपाला यह ले अपनी कंठी माला!* ऐसा कहते सुने जाते हैं। वास्तव में दोनों गलत हैं। जबकि वाक्य अपनी जगह १००% सही है कि *पहले आत्मा फिर परमात्मा* मगर सही अर्थ समझने में दोनों ने भूल की है। अब विचार ये करना है कि सही अर्थ क्या है?
*सही अर्थ इस प्रकार है!*
आत्मा को जानने से परमात्मा को जानना अधिक कठिन है। आत्मा में दो ही गुण हैं। *पहला आत्मा एक सत्तावान पदार्थ है।दूसरा आत्मा एक चेतन पदार्थ है।* अब करते हैं बात परमात्मा की।परमात्मा में तीन गुण हैं। *पहला आत्मा भी एक सत्तावान पदार्थ है।दूसरा आत्मा भी चेतन पदार्थ है।तीसरा गुण का परमात्मा आनन्द स्वरुप है।* इस पर विद्वानों ने,वैदिक शास्त्रों ने कहा पहले दो गुणों को जानो तो फिर तीसरा गुण वाला परमात्मा भी समझना सरल हो जायेगा। विद्वानों के इस सूत्र वाक्य का लोगों ने गलत अर्थ लगा लिया कि पहले आत्मा को तृप्त करो फिर फुर्सत मिलेगी तो परमात्मा को भी याद कर लेंगे! सत्यता यह है कि न कभी आत्मा तृप्त होगी और न ही फुर्सत मिलेगी! अत: इसका सही अर्थ यही है कि *पहले आत्मा के गुण-कर्म -स्वभाव* को जानो तो फिर तीन तीन गुणज्ञवाले परमात्मा को जानना भी सरल हो जायेगा!
🍁 *आओ इसका पता लगाओ*🍁
जीवात्मा के इस रहस्य को जाने बिना हम परमात्मा तक कभी नहीं पहुंच सकते। और कोई दूसरा वैदिक उपाय है भी नहीं।जो अवैदिक उपाय हैं वो केवल भटकाने वाले ही हैं। अत: यहां हम आत्मा को समझने के लिए एक 🏵️ संवाद का सहारा लेते हैं।जिसमें *जिज्ञासा व समाधान* 🏵️ का सहारा लेते हैं!
🪷 प्रथम जिज्ञासा🪷
*जीवात्मा किसे कहते हैं ?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान 🌹
एक ऐसी वस्तु जो अत्यंत सूक्ष्म है, अत्यंत छोटी है, एक जगह रहने वाली है, जिसमें ज्ञान अर्थात् अनुभूति का गुण है, जिसमें रंग, रूप, गंध, भार नहीं है, जो कभी नाश नहीं होता, जो सदा से है और सदा रहेगी, जो मनुष्य-पक्षी-पशु आदि का शरीर धारण करती है तथा कर्म करने में स्वतंत्र है उसे जीवात्मा कहते हैं । जीवात्मा स्थान नहीं घेरती, एक सुई की नोक पर विश्व की सभी जीवात्माएँ आ सकतीं हैं ।
🪷 द्वितीय जिज्ञासा 🪷
*मृत्यु के बाद जीवात्मा की गति ?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान🌹
मृत्योपरांत जीवात्मा कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म को प्राप्त करेगी या मुक्त/मोक्ष को प्राप्त करेगी । जीवात्मा शरीर छोड़ने के बाद [मृत्यु पश्चात] ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार कुछ पलों में शीघ्र ही दूसरे शरीर को धारण कर लेता है । एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है । यह सामान्य नियम है ।
🪷 तृतीय जिज्ञासा 🪷
*आत्मा का स्वभाव क्या है?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान🌹
आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उस पर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।
जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं । कर्मों का फल अवश्य मिलता है, बिना फल दिए वे कर्म कभी नष्ट नहीं होते क्योंकि
*अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।*
अर्थात् किये गये अच्छे बुरे कर्मों का फल अवश्य भोगना पढ़ेगा ।
इस विषय में अत्रि स्मृति का प्रमाण *
*नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि ॥*
महात्मा चाणक्य जी का कहना है
*यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो गच्छति मातरम् ।*
*तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति ॥*
चाणक्य के इस श्लोक का अर्थ है ।
हजारों गायों के बीच में से भी बछड़ा जैसे केवल अपनी माँ के पास ही आता है, वैसे ही किया हुआ कर्म हजारों मनुष्यों में कर्ता को पहचान लेता है ।
🪷 पंचम जिज्ञासा 🪷
*पुनर्जन्म में जीवात्मा किस शरीर को प्राप्त होगी ?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान 🌹
मनुष्य का जीव पशु-पक्षियों में और पशु-पक्षियों का जीव मनुष्य में, आता जाता है । जब पाप अधिक बढ़ जाते हैं और पुण्य कम होते हैं तब मनुष्य का जीव पशु आदि नीच शरीर में जाता है । जब धर्म अधिक और अधर्म कम होता है तो मनुष्य का शरीर मिलता है । सात्विक और राजसिक कर्मों के मिले जुले प्रभाव से मानव देह मिलती है । यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में । यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।
🪷 षष्टम् जिज्ञासा 🪷

*मोक्ष का मतलब क्या होता है?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान 🌹
मुक्त या मोक्ष का अर्थ है, समस्त दुःख, भय चिंता, रोग, शोक, पीड़ा, इच्छाओं का त्याग, जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर परमपिता परमात्मा के परम आनन्द को प्राप्त करना तथा बिना शरीर के भी इच्छानुसार स्वतंत्रता पूर्वक समस्त लोक-लोकान्तरों में भ्रमण करना । यह मुक्ति या मोक्ष वेदादि शास्त्रों में बताये ईश्वर आज्ञा पालने, अधर्म, अविद्या, कुसंग, कुसंस्कार, बुरे व्यसन से अलग रहना तथा यम नियमों का पालन करते हुए अष्टांगयोगाभ्यास के माध्यम से समाधि अवस्था को प्राप्त करके समस्त अविद्या और अज्ञानता के संस्कारों को नष्ट करके सत्यभाष्ण, परोपकार न्याय धर्म की वृद्धि करने तथा जब संसार के भोगों से वैराग्य हो जाता है । तब जीवात्मा की संसार के भोग पदार्थ को प्राप्त करने की इच्छायें समाप्त हो जाती हैं तब जीवात्मा मोक्ष को प्राप्त करती है । वैराग्य ! मन की एक स्थिति है, जो जीवन में किसी भी समय सहज ही प्राप्त हो सकती है । इसके लिए राग-द्वेषादि समस्त क्लेशों को नष्ट करने वाले योगी को शरीर छोड़ने के बाद मोक्ष मिलता है ।
🌺 *यक्ष प्रश्न* 🌺
जीवात्मा वास्तव में क्या चाहता है ?
*यक्ष समाधान*
इसका संक्षिप्त उत्तर है कि जीवात्मा पूर्ण और स्थायी सुख, शांति, निर्भयता और स्वतंत्रता चाहता है जो कि इस मनुष्य शरीर में असम्भव है । इसलिए वेद शास्त्रों में मोक्ष या मुक्ति का मार्ग बताया गया है ।जहां पूर्ण आनन्द है ।
जीवात्मा, अपने कर्मफल को भोगने और मोक्ष को प्राप्त करने के लिए शरीर को धारण करता है । संसार के प्रारम्भ से यह शरीर धारण करता आया है और जब तक मोक्ष को प्राप्त नहीं करता तब तक शरीर धारण करते रहेगा । शरीर दो प्रकार का होता है । [१ ]सूक्ष्म शरीर (मन, बुद्धि, अहंकार, ५ ज्ञानेन्द्रियाँ) और [२] स्थूल शरीर (५ कर्मेन्द्रियाँ = नासिका, त्वचा, कर्ण आदि बाहरी शरीर) और इस शरीर के द्वारा आत्मा कर्मों को करता है ।
जब मृत्यु होती है तब आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को पूरे स्थूल शरीर से समेटता हुआ किसी एक द्वार से बाहर निकलता है । और जिन जिन इन्द्रियों को समेटता जाता है वे सब निष्क्रिय होती जाती हैं । तभी हम देखते हैं कि मृत्यु के समय बोलना, दिखना, सुनना सब बंद होता चला जाता है । मृत्यु ठीक वैसा ही जैसा कि हमें बिस्तर पर लेटे लेटे गहरी नींद में जाते हुए लगता है । हम ज्ञान शून्य होने लगते हैं । नवजात शिशु को ध्यान पूर्वक बढ़ता हुआ देखेंगे तो पायेंगे वे अपने पूर्व जन्म गुण लेकर आता है । भय, हर्ष, स्वाद, सीखने की क्षमता, उत्साह, सोते हुआ रोना व हँसना ! यह सब क्रियाएँ और स्मरण उसके सूक्ष्म शरीर के साथ ही आईं हैं ।
🪷🪷 सप्तम जिज्ञासा 🪷🪷
*मोक्ष के बाद जीवात्मा कहाँ रहता है ?*
🌹 उत्कृष्ट समाधान 🌹
मुक्ति या मोक्ष में जीवात्मा ब्रह्म में रहता है ब्रह्म जो पूर्ण है सर्व व्यापक है उसी में जीवात्मा स्वतंत्र आनन्दपूर्वक विचरता है। मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है। जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती । जब स्थूल शरीर नहीं रहता तो जीवात्मा में सूक्ष्म शरीर के संकल्पादि स्वाभाविक शुद्ध गुण रहते हैं।जब सुनना चाहता है तब सुनता है स्पर्श करना चाहता है तो तब त्वचा देखने के संकल्प से चक्षु। स्वाद के अर्थ रसना संकल्प के लिए मन व बुद्धी। स्मरण के लिये चित अपनी स्व शक्ति से मुक्ति और संकल्प मात्र से शरीर होता है । जैसे शरीर धारण करके इन्द्रियों के द्वारा जीव आनन्द भोगता है और वे आनन्द असल में जीवात्मा ही भोगती है शरीर नहीं वैसे ही मुक्ति में बिना शरीर के संकल्प मात्र से सब आनन्द भोग लेता है । जैसे बिना परिवार के व्यक्ति अपने विचारों में ही समस्त प्राणी मात्र को अपना परिवार मान कर सुख अनुभव कर सकता है । जैसे एकांत में ईश्वर की उपस्थिति को अनुभव कर के अकेला नहीं समझता यह सब संकल्प ही कहलाता है । जैसे स्वादिष्ट चीज़ के स्मरण मात्र से ही मुख में उसका स्वाद संकल्प मात्र से ही अनुभव हो जाता है । वेदादि शास्त्रों के अनुसार मोक्ष की समय अवधि है ! ३६ हजार बार सृष्टि की उत्पत्ति व विनाश होने तक अर्थात् ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्षों तक ईश्वर के आनंद में मग्न रहता है!
आशा है अब आपको समझ में आ गया होगा कि *पहले आत्मा या परमात्मा?* यदि समझ में आ गया है तो प्रतिदिन परमात्मा का चिंतन करने से पहले बातों पर ध्यान करो!
[१] *मैं कौन हूं?* [२] *मैं कहां से आया हूं?* [३] *मुझे संसार में किसने भेजा है?* [४] *मुझे संसार में किसलिए भेजा है?* [५] *मैं क्या कर रहा हूं?*
जिस दिन इन पांच बातों को पता लग जायेगा! तब ध्यान से आंख खुलते ही परमात्मा सामने खड़ा दिखाई देगा! अर्थात उसकी अनुभूति प्रत्यक्ष हो जायेगी और आप भी दूसरों से कह सकेंगे कि *पहले आत्मा फिर परमात्मा*!
आचार्य सुरेश वैदिक प्रवक्ता !
आर्यावर्त साधना सदन
पटेल नगर दशहराबाग बाराबंकी।
*7985414636*