मुंबई – पिछले तीन दशक से साहित्य और अदब के मंचों पर अपनी दमदार आवाज़ और दमदार कलाम के ज़रिए श्रोताओं के दिलों में उतर जाने वाले गंगा जमुनी तहजीब के शायर सलीम बस्तवी अज़ीज़ी आज मुंबई की सरजमीन पर बहैसियत एक शायर और गीतकार के रूप में जाने जा रहे हैं। प्रस्तुत है आज उनके कुछ अशआर,,,,,
1/ मेरे बुर्जुगों के सर की पगड़ी जो हो सके तो बचाए रखना
दिलों में उनकी नसीहतों के जो फूल हैं वोह खिलाए रखना,
2/ यह वक्त ऐसा ही आ गया है कि फिक्र करने की है ज़रूरत
किसी भी सूरत में अपने घर को मुहब्बतों से सजाए रखना,
3/ हमारी ईदें तुम्हारी होली रहेंगी जिंदा जहां में लेकिन
दिलों में अपने मुहब्बतो की जो है वो गंगा बहाए रखना,
4/ हो सच्चे आशिक अगर वतन के तो अपने परचम पे जां लुटादो
रहो कहीं भी जहां में लेकिन तुम अपना परचम उठाए रखना,
5/ हो राह कितनी भी पुरखतर जो ,सलीम, खुद को न थकने देना
ठहरना मंज़िल पे जाके अपनी, और हौसलों को बनाए रखना,
,,,,, सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,,,,
शायर एवं गीतकार, मुंबई,,,,,