मोहन मधुर बजाये बंसी, प्रेम मगन हो इतराऊँ ।
देख के छवि मैं तो उनकी, देखो मोहित हो जाऊंँ ।।
जब भी मोहना बजाते बंसी, गोकुल सुनता ही जाये ।
बिन कान्हा के बाल ग्वाल भी, अब चैन कहीं ना पाये ।।
आस लगी है मेरे कान्हा तुमको कैसे विसराऊ ।
मोहना मधुर बजाए बंसी प्रेम मगन हो डतराऊँ ।।
तू तो कान्हा रास रचा कर ,प्रेम भाव है सिखलाये ।
मिलकर सारे साथी रहना, अमर प्रेम है बतलाये ।।
रख लो शरण में अपने कान्हा, जीवन अर्पण कर जाऊंँ ।
मोहना मधुर बजाये बंसी, प्रेम मगन हो इतराऊँ।।
तेरा मुखड़ा देख कर कान्हा, सबका मन है हर्षाता ।
तेरे चरणों में ही अब तो ,चैन मुझे भी है आता।।
डूब गई हूँ मैं तो तुम मे, तेरा हरदम गुण गाऊँ।
मोहना मधुर बजाये बंसी, प्रेम मगन हो इतराऊँ।।
अंजना सिन्हा
रायगढ़