थिंक फॉर फोरम ने किशोरों में बढ़ रहे नशे को लेकर अपने रिसर्च प्रोग्राम के ताजा नतीजे साझा किए। उन्होंने पाया वैंपिग डिवाइस यानी तंबाकू निर्मित व अन्य नशीले पदाथरे से बने ई-सिगरेट का सेवन नई उम्र के लोगों को गिरफ्त में लेता जा रहा है। उनका मानना है कि फिल्म-संगीत उद्योग, सोशल मीडिया, यूनिवसिर्टी व स्कूलों में इस पर खुलकर बात होनी चाहिए। अभिभावकों व बच्चों के दरम्यान ऐसे रिश्ते कायम होने पर जोर दिया गया, जहां नशे से होने वाले नुकसान पर खुलकर बात हो।
ग्लोबल एडल्ट टैबेको सव्रे (2016-17) की रपट के अनुसार, भारत में 29 फीसदी वयस्क किसी न किसी तरह के तंबाकू के उपयोग के आदी हैं। 37 फीसदी एक से पांच सिगरेट हर रोज फूंकते हैं जिसके कारण हर साल तकरीबन दस लाख लोगों की जानें जाती हैं। ई यानी इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट पर देश में कानूनन पाबंदी होने के बावजूद यह आसानी से बाजार में उपलब्ध है। यही नहीं, साढ़े चार सौ से ज्यादा ब्रांड भी बाजार में मौजूद हैं। प्रारंभ में ऐसे संकेत दिए गए थे कि यह धूम्रपान के बनिस्बत कम नुकसानदेह है। इसलिए सिगरेट के लती लोगों को इसका इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती थी।
मगर बाद में इससे होने वाले नुकसान को देखते हुए विशेषज्ञों ने पाया कि धूम्रपान छोड़ कर लोग ई-सिगरेट के लती होते जा रहे हैं। खासकर किशोरों में सिगरेट की लत तेजी से बढ़ती जा रही है। देखा-देखी, एक-दूसरे से प्रभावित होकर या साथियों के दबाव में नई पीढ़ी तरह-तरह के खतरनाक नशेबाजी में फंस जाती है। इसके कारणों में पढ़ाई का दबाव, कॅरियर की फिक्र, बढ़ती प्रतिस्पर्धा, चिंता-तनाव, अरुचि, अनिच्छा व उपेक्षाभाव भी शामिल होती हैं।
वैंपिक डिवाइस के जरिए वे विभिन्न खतरनाक नशों के आदी किशोरों को बचाने का प्रयास करना हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए। समाज, अभिभावकों के साथ ही सरकार और प्रशासन को भी नई पीढ़ी को नशे के चंगुल से बचाने के लिए तंबाकू और नशीले पदाथरे की बिक्री व लेन-देन पर सख्ती बरतनी चाहिए।