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🧘 *ऐंसे थे महर्षि दयानंद सरस्वती*🧘
संसार में महाभारत काल के बाद अनेक संत,महात्मा,महापुरुष,समाज सुधारक,दार्शनिक आए मगर महर्षि दयानंद जी एकदम अलग थे। *श्याम जी कृष्ण वर्मा,भारत के अद्वितीय न्याधीश गोविंद महारानाडे,राजीव दीक्षित के गुरु आचार्य धर्पाल जी,आचार्य श्रीराम शर्मा,विश्व जागृति मिशन के आचार्य सुधांशु,सरदार भगत सिंह,सरदार बल्लभ भाई पटेल ,आर्य कुमार सभा के सिपाही भूतपूर्व प्रधान मंत्री अटल विहारी वाजपेयी,स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस, महात्मा ज्योतिबा फूले ,स्वामी देव आदि ने महर्षि दयानंद सरस्वती जी से कुछ ने शिक्षा,कुछ ने दीक्षा, तोकुछ ने प्रेरणा ली है।* इसी से आप अनुमान लगा सकते हैं कि महर्षि दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के प्रथम पुरोधा थे।यदि ऋषि दयानंद १९ वीं शताब्दी में नहीं आये होते तो अंग्रेज भारत कभी नहीं छोड़ते।इस बात की पुष्टि कभी *महाकवि काका हाथरसी* आकाशवाणी से इस प्रकार किया करते थे।
*गोरे देश न छोड़ते राजी-राजी!*
*यदि जग में साथ न देते आर्य समाजी!!*
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अब मैं आपको महर्षि दयानंद सरस्वती जी के *वट वृक्ष जैंसे विशाल चरित्र* के कुछ झलकियां दिखा रहा हूं जिसे पढ़कर आप भी कुछ अनुमान करें इस महापुरुष के बारे में।
🙌आलोक पंक्ति🙌 *महर्षि दयानन्द सरस्वती की स्वप्रशंसा-पूजा से दूर रहने की भावना*
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🌹 *चरित्र-चित्रण*🌹
— स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक द्वारा !
*[१]* काशी में – 1869 ई० में स्वामी जी के पास रात्रि में एक प्रसिद्ध पण्डित आकर बोले, आप मूर्तिपूजा का खण्डन छोड़ दें तो *हम आप को अवतार मान लेंगे* परन्तु स्वामी जी ने इसे ठुकरा दिया।
*[२]* सूरत में – जेठालाल वकील ने कहा कि *यदि मूर्तिपूजा का मण्डन आप करने लगें तो हम आप को शंकर का अवतार मान लें।* स्वामी जी ने उत्तर दिया – *मुझे ऐसे प्रलोभनों से कोई सत्य से नहीं हटा सकता।*
*[३]* काशी में – काशी नरेश ने कहा था कि यदि मूर्तिपूजा का प्रतिवाद करना आप छोड़ दें तो *मैं आपको गुरु मान लूं और छत्र चढ़ाऊँ।* स्वामी जी ने अस्वीकार किया।
*[४]* भक्तों ने फोटो लेने को कहा। वह तैयार न थे कि कहीं उनके फोटो की पूजा न चल पड़े। फोटो तो ले लिया गया परन्तु उन्होंने आदेश दिया कि *हमारा फोटो समाज मन्दिरों* में न रखा जावे।
*[५]* फर्रुखाबाद में – पं० ज्वालादत्त ने स्वामी जी की स्तुति में कविता सुनाई तो स्वामी जी ने कहा – *मैं मनुष्य हूँ, इस प्रकार मेरी स्तुति करना कदापि उचित नहीं।*
*[६]* लाहौर में – समाज का सत्सङ्ग हो रहा था। स्वामी जी आए तो लोग खड़े हो गए। *स्वामी जी ने निषेध किया कि कितना भी बड़ा मनुष्य आवे, उपासकों को सत्सङ्ग में खड़ा न होना चाहिए* क्योंकि परमेश्वर से बड़ा कोई नहीं, इस प्रकार होने से उपासना-धर्म का निरादर होता है।
*[७]* लाहौर में – बाबू शारदाप्रसाद भट्टाचार्य ने अन्यों की सम्मति से प्रस्ताव रखा कि *स्वामी जी को आर्यसमाज लाहौर के संरक्षक या अधिनायक की पदवी दी जावे।” परन्तु स्वामीजी ने इसे यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि *इसमें गुरुडम की गन्ध है और मेरा उद्देश्य गुरुडम को तोड़ना है।* मेरे ऐसा करने पर पुनः अन्य स्थानापन्न होगा, फिर वही गुरुडम चल पड़ेगा और अन्य पन्थों की भान्ति गुरुडम के दोष आ जायेंगे ।
*[८]* दानापुर की चर्चा है – एक भक्त ने स्वामी जी से कहा कि *आप ऋषि हैं* तो स्वामी जी ने कहा कि *यदि मैं ऋषियों के समय में होता तो मेरी साधारण विद्वानों में गणना होती।*
*[९]* उदयपुर में – महाराणा ने कहा कि महाराज, *आप हमारे गुरु हैं।* स्वामी जी ने उत्तर दिया कि *मैं आपका गुरु नहीं, आप मूर्तिपूजा करते हैं और मैं मूर्तिपूजा का खण्डन करता हूँ, अतः मैं आपका गुरु नहीं बनता* इस प्रकार महाराणा की गुरु-पदवी को भी ठुकरा दिया। [स्वामी ब्रह्ममुनि, उदयपुर से यह चरित्र प्राप्त हुआ]
*[१०]* उदयपुर में – कविराज श्यामलदास ने कहा कि आपका कोई स्मारक बनना चाहिए तो स्वामी जी ने कहा कि *ऐसा न करना किन्तु मेरे शव की भस्म खेत में डाल देना, स्मारक से मूर्ति-पूजा चल पड़ेगी।*
अब आप खोज डालिए *महाभारत से आज तक* कोई ऐसा चरित्र आपको मिला!दुर्भाग्य ये है कि आज की सरकारों ने इस *आधुनिक भारत के महाशिल्पी* को पढ़ा ही नहीं।यदि पढ़ा भी तो उनमें साहस नहीं इस चरित्र को उजागिर करने का।क्योंकि आज की सरकारें *राजनीति करती हैं उनके पास राष्ट्रनीति है ही नहीं।इसलिए वो अपना आदर्श उसी महापुरुष को मानते हैं जिसने भगवा वस्त्रों मे केवल राजनीति की* अतं में ऋषि की महिमा में दो पंक्तियां कहकर विश्राम लेता हूं।
*आदि में थी दया जिसके अंत में आनंद था।*
*स्वामी दयानंद था वो स्वामी दयानंद था!!*
यदि आप इस चरित्र को और अधिक जानना चाहते हैं तो *दयानंद दिग्दर्शन* पुस्तक का अवलोकन कर सकते हैं।
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आचार्य सुरेश जोशी
📱 *7985414636*📱