राष्ट्रीय शैक्षिक एवं अनुसंधान और प्रषिक्षण परिषद् (हृष्टश्वक्रञ्ज) की पुस्तकों में पढ़ाए जाने वाले पाठों में बदलाव की शुरुआत साकारात्मक नजरिए से हो गई है।
अब 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में से बाबरी मस्जिद, हिंदुत्व की राजनीति 2002, गुजरात दंगों से जुड़े पाठ को हटा दिया है। इसकी जगह ‘राम जन्मभूमि आंदोलन की विरासत क्या हैÓ इस पाठ को जोड़ा गया है। इससे पहले इतिहास की पुस्तकों में राखीगढ़ी और आर्यों के मूल स्थान से जुड़े पाठ जोड़े गए हैं।
एनसीआरटी की पुस्तकों में वाकई सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं। इसके पहले भारतीय ज्ञान प्रणाली के संदर्भ में महरौली के लौह स्तंभ के बारे में भी बताया गया है। ऋग्वेद में लोहे के आविष्कार के बारे में बताया गया है। इसी क्रम में सोना, तांबा और कांसा धातुओं के अविष्कार किए गए। अतएव ऐसे पाठों को जोड़ना भारतीय विज्ञान की विरासत को छात्रों के सामने लाना है। इसी क्रम में भारत के इतिहास में आर्य अब आक्रामणकारी नहीं, बल्कि भारतीय मूल के रूप में दर्शाए गए हैं।
21 वर्ष की खींचतान और दुनियाभर में हुए अध्ययनों के बाद आखिरकार यह तय हो गया कि ‘आर्य सभ्यताÓ भारतीय ही थी। राखीगढ़ी के उत्खनन से निकले इस सच को देश के पाठ्यक्रमों में शामिल करने का श्रेय ‘राखीगढ़ी मैनÓ के नाम से प्रसिद्ध हुए प्राध्यापक वसंत शिंदे को जाता है। एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की किताब में बदलाव किया गया है। इसमें इतिहास की पाठ्य पुस्तक में ‘ईट, मोती और हड्डियां : हड़प्पा सभ्यताÓ नामक पाठ में आर्यों को मूल भारतीय होना बताया है। इसके अलावा कक्षा 7, 8, 10 और 11 के इतिहास और समाजशास्त्र के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किया गया है। इतिहास तथ्य और घटना के सत्य पर आधारित होता है।
इसलिए इसकी साहित्य की तरह व्याख्या संभव नहीं है। विचारधारा के चश्मे से इतिहास को देखना उसके मूल से खिलवाड़ है, परंतु अब आर्यों के भारतीय होने के संबंधी एक के बाद एक शोध आने के बाद इतिहास बदला जाने लगा है। इस सिलसिले में पहला शोध स्टेनफोर्ड विविद्यालय के टॉमस कीवीशील्ड ने किया था। 2003 में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्सÓ में प्रकाशित इस शोध-पत्र में सबसे पुरानी जाति और जनजाति के वशांणु (जीन) के आधार पर आर्यों के भारत का मूल निवासी बताया गया था। हालांकि वर्ष 2009 में वाराणसी हिंदू विविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो लालजी सिंह और प्रो. थंगराज ने भी आनुवांशिक परीक्षण के बाद आर्यों को मूल भारतीय बताया था।
2019 में प्रो. वसंत शिंदे द्वारा राखीगढ़ी उत्खनन से मिले 4000 साल पुराने वंशाणु की जांच में सबसे बड़ा सच सामने आया। शोध में पाया गया कि राखीगढ़ी से मिला जीन वर्तमान के प्रत्येक भारतीय व्यक्ति में उपलब्ध है। इसके आधार पर यह तथ्य स्थापित हुआ कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति आर्यों द्वारा निर्मिंत है। एनसीआरईटी के इतिहास पाठ्यक्रम निर्धारण समिति के अध्यक्ष बनने पर प्रो. शिंदे ने इस तथ्य के आधार पर पाठ्यक्रम में संशोधन कराए हैं। इसी पुस्तक में मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के नाम के साथ छत्रपति और महाराज जोड़ा गया है। इसी तरह कक्षा 12वीं के समाजशास्त्र विषय के पाठ्यक्रम से सांप्रदायिक दंगों के चित्र हटाए गए हैं। इतिहास पुस्तकों में यह बदलाव सिनौली-राखीगढ़ी में हुए उत्खननों में मिले साक्ष्यों के आधार पर संभव हुआ है। प्रोफेसर शिंदे ने राखीगढ़ी के उत्खनन के समय बताया था कि अलग-अलग खुदाई में 106 से भी ज्यादा नर-कंकाल मिले हैं।
साथ ही भिन्न आकार व आकृति के हवन-कुंड और कोयले के अवशेष मिले हैं। तय है भारत में 5000 साल पहले हवन होते थे। यहीं सरस्वती और इसकी सहायक दृश्यवंती नदी के किनारे हड़प्पा सभ्यता के निशान मिले हैं। ये लोग सरस्वती की पूजा करते थे। आनुवांशिक संरचना के आधार पर हैदराबाद की संस्था ‘सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजीÓ के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध से जो निष्कर्ष सामने आए थे, उनसे स्पष्ट हुआ था कि मूल भारतीय ही ‘आर्यÓ थे।
पाश्चात्य इतिहास लेखकों ने पौने दो सौ साल पहले जब प्राच्य विषयों और प्राच्य विद्याओं का अध्ययन शुरू किया तो बड़ी कुटिल चतुराई से जर्मन विद्वान व इतिहासविद् मैक्समूलर ने पहली बार ‘आर्यÓ शब्द को जाति सूचक शब्द से जोड़ दिया। वेदों का संस्कृत से जर्मनी में अनुवाद भी पहली बार मैक्समूलर ने ही किया था। ऐसा इसलिए किया गया जिससे आर्यों को अभारतीय घोषित किया जा सके। जबकि वैदिक युग में ‘आर्यÓ और ‘दस्युÓ शब्द पूरे मानवीय चरित्र को दो भागों में बांटते थे। प्राचीन साहित्य में भारतीय नारी अपने पति को ‘आर्य-पुरुषÓ अथवा ‘आर्य-पुत्रÓ नाम से संबोधित करती थी। इससे यह साबित होता है कि आर्य श्रेष्ठ पुरुषों का संकेत-सूचक शब्द था। ऋग्वेद, रामायण, महाभारत, पुराण व अन्य संस्कृत ग्रंथों में कहीं भी आर्य शब्द का प्रयोग जातिसूचक शब्द के रूप में नहीं हुआ है। आर्य का अर्थ ‘श्रेष्ठिÓ अथवा ‘श्रेष्ठÓ भी है। यदि आर्य भारत में बाहर से आए होते तो प्राचीन विपुल संस्कृत साहित्य में अवश्य इस घटना का उल्लेख व स्पष्टीकरण होता।
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