🐦⬛ *ओ३म्*🐧
💐 ईश्वरीय वाणी वेद 💐
*ओ३म् विष्णो कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे।इन्द्रस्य युज्य: सखा ।।*
।। ऋग्वेद १/२२/१९।।
🌻 *मंत्र का पदार्थ*🌻
हे लोगो! [ विष्णो ] विष्णु के [ कर्माणि ] कर्मों को [ पश्यत ] देखो [ यत: ] जिन कर्मों को देखकर मनुष्य अपने [ व्रतानि ] व्रतों को [ पस्पशे] पालन करने में सफल होता है । विष्णु [ इंद्रस्य ] इंद्र का [ युज्य: ] सबसे योग्य [ सखा ] सखा या मित्र है।
🌼 *मंत्र पर चिंतन* 🌼
मंत्र में *विष्णु* शब्द को देखकर यह भ्रान्ति हो सकती है कि ये पौराणिकों के भगवान विष्णु की बात हो रही है।किसी को यह भ्रान्ति हो सकती है कि *वेद में विष्णु भगवान का नाम आया है अतः भगवान साकार* होता है। अतः इन दोनों भ्रांतियों का निवारण करना अनिवार्य है। यहां पर *विष्णु शब्द निराकार परमात्मा का गुण चाची* नाम है। विष्णु शब्द का अर्थ है *वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णु* अर्थात् चर और अचर रुप जगत् में व्यापक होने से निराकार परमात्मा का ही एक *विशेषण युक्त नाम विष्णु* भी है।
यहां पर यह बताया जा रहा है कि यह जो अनन्त ब्रह्माण्ड जिसका ओर -छोर नहीं दिखाई देता इसकी उत्पत्ति परमात्मा ने ही की है।जब यह कहा जाता है कि पृथिवी को *ईश्वर* ने बनाया है तो इसका अर्थ यह होता है कि परमाणुओं की पहली हल चल से , जिससे पृथिवी का बनना प्रारंभ हुआ तब से लेकर जब तक पृथिवी पूर्ण रूप से तैयार हो गई और उसके पश्चात वे सब प्रगतियां जिनके आश्रय से पृथिवी बनी हुई है,इन सब *क्रियाओं का कर्ता परमेश्वर* है।इस वेद मंत्र द्वारा यह प्रेरणा की गई है कि हे मनुष्यो यदि तुम ईश्वर को समझना, जानना व साक्षात्कार करना चाहते हो तो *विष्णो:कर्माणि पश्यत* अर्थात् परमात्मा की रचना को देखो! क्योंकि रचना को देखकर रचना कार का ज्ञान होता है।
*चंद्र रचा सूरज रचा,रच दिये तारे अनेक।*
*मानव में है बल नहीं, जो रच देवे एक ।।*
आचार्य सुरेश जोशी
*वैदिक प्रवक्ता*