🌸 ओ३म् 🌸
📚 ईश्वरीय वाणी वेद 📚
*वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम्।मक्ष्यित्था धिया नरा* !!
।।ऋग्वेद १/२/६ ।।
🪵 मंत्र का पदार्थ 🪵
( वायो ) हे सबके अंतर्यामी ईश्वर! जैसे आपके धारण किये हुए ( नरा ) संसार के सब पदार्थों को प्राप्त कराने वाले ( इन्द्रश्च ) अंतरिक्ष में स्थित सूर्य का प्रकाश और पवन है । ( मक्षु ) शीघ्र गमन से ( इत्था ) धारण पालन बुद्धि और क्षय हेतु से सोम आदि सब औषधियों के रस को ( सुन्वत: ) उत्पन्न करते हैं,उसी प्रकार ( नरा ) शरीर में रहने वाले जीव और प्राणवायु उस शरीर में सब धातुओं के रस को उत्पन्न करके ( इत्था ) धारण पालन वृद्धि और क्षय हेतु से { मक्षु ) सब अंगों को शीघ्र प्राप्त होकर ( धिया ) धारण करने वाली बुद्धि और कर्मों से ( निष्कृतम् ) कर्मों के फल को ( आयातमुप ) प्राप्त होते हैं।
🥝 मंत्र का भावार्थ 🥝
ब्रह्माण्डस्थ सूर्य और वायु सब संसारी पदार्थों को बाहर से तथा जीव और प्राण शरीर के भीतर के अंड्ग आदि को सब प्रकार प्रकाश और पुष्ट करने वाले हैं, परंतु ईश्वर के आधार की अपेक्षा सब स्थानों में रहती है।
🌼 मंत्र का सार तत्व 🌼
इस मंत्र में आधुनिक विज्ञान की लाचारी व खोखले पन पर कड़ा प्रहार किया गया है। हमारे सामने दो सत्तायें विद्यमान हैं।एक 🕉️ ब्रह्माण्ड और दूसरा पिंड 🕉️ इसमें जो ब्रह्माण्ड है उसके संगठित संचालक दो हैं 🌻 सूर्य और वायु 🌻
इसी प्रकार जो पिंड है उसके भी दो संगठित संचालक हैं 🌻 जीव और प्राण 🌻 यहां तक🌿 आधुनिक विज्ञान 🌿 और 📚 वेद विज्ञान 📚 दोनों में सामंजस्य है।
वेद भगवान कहते हैं कि ये जो 🌹 सूर्य और वायु,जीव और प्राण 🌹 हैं।ये सृष्टि की व्यवस्था है। व्यवस्था को विज्ञान भी मानता है।आगे वेद भगवान कहते हैं कि ये व्यवस्था अपने आप नहीं चलती! आधुनिक विज्ञान कहता है अपने आप चलती है ( बाई चांस ) ! वेद भगवान कहते हैं इस 🌻 सूर्य और वायु,जीव और प्राण 🌻 की व्यवस्था को एक व्यवस्थापक की आवश्यकता है उस व्यवस्थापक का नाम ही है!🌼 परमात्मा 🌼 जिस दिन विज्ञान भी व्यवस्थापक को मानने लगेगा उसी दिन संसार से अधर्म नष्ट होकर धर्म की स्थापना होकर विश्व में सुख-शांति -आनन्द का साम्राज्य स्थापित होगा।।
*आचार्य सुरेश जोशी*
🏵️ वैदिक प्रवक्ता 🏵️
7985414636