ईश्वरीय वाणी वेद -आचार्य सुरेश जोशी

🍁🍁 ओ३म् 🍁🍁
🌴 ईश्वरीय वाणी वेद 🌴
ओ३म् वायो तव प्रपृञ्चती देना जिगाति दाशुषे।उरूची सोमपीतये।।
ऋग्वेद १/२/३
🪷 मंत्र का पदार्थ 🪷
वायो= हे वेद विद्या के प्रकाश करने वाले ईश्वर! तव= आपकी । प्रपृञ्चती= सब विद्याओं के संबंध से विज्ञान का प्रकाश कराने और, उरूची= अनेक विद्याओं के प्रयोजनों को प्राप्त कराने वाली ,धेना= चारों वेदों की वाणी है सो , सोमपीतये= जानने योग्य संसारी पदार्थों के निरंतर विचार करने तथा, दाशुषे= निष्कपटता से प्रीति के साथ विद्या देने वाले पुरुषार्थी विद्वान को जिगाति= प्राप्त होती है।
📚 मंत्र का भावार्थ 📚
जिस वेद वाणी से परमेश्वर और भौतिक वायु के गुण प्रकाश किये हैं उसका फल वेदविद्या की प्राप्ति है।दूसरा वायु का फल जीवों को वाणी का आदान-प्रदान है।
🕉️ मंत्र का सार 🕉️
ईश्वर की भक्ति का फल यह है कि शुद्ध अंत:करण होने पर अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा ऋषि की तरह ही वेदज्ञान का प्रकाश होगा। तथा ईश्वर की बनाई वायु शक्ति से हम उस ईश्वर की वेद वाणी को जन -जन तक पहुंचाने में समर्थ होंगे। आचार्य सुरेश जोशी
१७ म ई सन् २०२४🍁

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