ग़ज़ल
तन्हा कोई कहानी न तो है कथन मेरा,
तेरे बगैर सारा अधूरा है फ़न मेरा,
साँसों की डोर जाने कहां टूट जाएगी,
रहता है मेरे साथ ही हरदम कफ़न मेरा,
ये क़र्ज़ जान देके उतारा न जाएगा,
पाला है ख़ूब मां ने भी करके जतन मेरा,,
न राग है न छन्द है मैं बेखुदी में हूँ,
ऐ काश! हो क़ुबूल ये बेसुर भजन मेरा,,
कितनी सुहानी ज़ीस्त थी अनमोल उन दिनों,
“जब घर के कामकाज में लगता था मन मेरा
सुनिये सदाये-दिल मेरा मैं खुशनसीब हूँ,
रास आ गया है “अक्स” उन्हें बाँकपन मेरा,,
अक्स वारसी