तिलहर में साझा गज़ल संग्रह ‘काशान-ए-अदब’ का समारोह पूर्वक हुआ विमोचन

कार्यक्रम में देश के कोने कोने से जुटे दिग्गज शायर कवि

मैं इन्साँ हूँ ज़माना जानता है

मगर पूछी गयी है ज़ात अक्सर-जर्रार तिलहरी

शाहजहांपुर। बज्म ‘काशान-ए-अदब’ की जानिब से आल इन्डिया मुशायरा और बज्म का पहला साझा गज़ल संग्रह का रस्मे इजरा (विमोचन) दिनॉक 10 जून शनिवार को नगर पालिका कम्युनिटी हाल तिलहर में हुआ। मुल्क के कोने कोने से आये शायरों ने अपना क़लाम पेश किया मुशायरा की सदारत ‘मुख्तार तिलहरी’ साहब ने की और बज्म के सदर जर्रार तिलहरी ने सभी शायरों की गुलपोशी की और एजा़ज से नवाज़ा। युवा शायर मुहम्मद रिज़वान ने बज़्म काशान-ए-अदब पर रौशनी डाली और कहा कि इस बज़्म ने हजारों शायर बनाये जो अपनी अपनी अदबी खिद़मात पेश कर रहे हैं। हर बज़्म का काम मुल्क के लोगों मे अदब से रहने और प्यार मुहब्बत बढा़ने का होता है साथ में मुख्य अतिथि के रूप में अशफाक हुसैन पूर्व जिला पंचायत मेम्बर् और विशिष्ट अतिथि के रूप मे साजिद खां डायरेक्टर चीनी मिल तिलहर थे। निजा़मत हसन तिलहर ने की।

अक्स वारसी ‘कुशीनगर ‘ने यूँ पढा़

तअज्जुब है कि दामन से सबा के लू निकलती है, तेरी गुफ्तार से बुग़ज़ों-हसद की बू निकलती हैं। डाo इम्तियाज़ समर (कुशीनगर)

शोर दरियाओं सा जो करते हैं करने दे उन्हें,तुझ को ख़ामोश ही रहना है समुन्दर की तरह। मुख्तार तिलहर ने पढा़, जा कर सके तो सीना ए बेदिल तलाश कर,दुनिया में कोई मेरा मुमासिल तलाश कर। बहर बनारसी सोनभद्र ने पढ़ा, लब पे हर शख़्स के गाली क्यों है,आज हर शख़्स वबाली क्यों है। जर्रार तिलहरी ने पढ़ा मैं इन्साँ हूँ ज़माना जानता है,मगर पूछी गयी है ज़ात अक्सर। एम0रिज़वान शाहजहाँपुरी ने पढ़ा उम्र पीरी की तो आने दे संभल जाऊंगा,तौबा कर लूंगा खताओं से बदल जाऊंगा। विनोद उपाध्याय हर्षित “बस्ती” ने पढ़ा सुम्बुल सा जिस्म था या कोई माहताब था, मखमल की सेज पे कोई सोया गुलाब था। जलील अख्तर जलील (ललितपुर ) ने पढ़ा तुम्हें सोचता जा रहा हूँ सफ़र में,मेरे साथ कोई परी चल रही है। सुशील सिंह पथिक बस्ती

मेहनतों से मंज़िलें हासिल अगर होती नहीं,आ ही जाता है जुबाँ पर मसअला तक़दीर का। जितेन्द्र पाल सिंह लखनऊ ने पढ़ा आँख से क़तरा गिरा रूख़सार तक दरिया हुआ, रो दिए बा वजह गम का बोझ तो हल्का हुआ।

सुरेन्द्र प्रताप सिंह,अहम, बस्ती ने पढ़ा

शिकवा नहीं है ज़ीस्त से कुछ प्यार भी नहीं,आज़ाद भी नहीं मैं,गिरफ़्तार भी नहीं। बहर बनारसी सोनभद्र ने पढ़ा

लब पर हर शख्स के गाली क्यों है,आज हर शख्स यहाँ बबाली क्यों है। नवाब आफ़ताब (कर्नाटक ) ने पढ़ा

हालात मेरे देखके हालात रो पडे़,कल रात चाँद तारे मेरे साथ रो पडे़। अब्दुल सलाम आज़िम सरधनवी(मेरठ) ने पढ़ा तीरगी में घिर गया अब ख़ुदा करेगा ख़ैर,गर मिले ज़रा सी भी रौशनी क़ुबूल है। शरीफ अमीन शाहजहॉपुर ने पढ़ा किया जो हम ने वादा था, लड़कपन का ज़माना था,तुम्हें भी भूल जाना था हमें भी भूल जाना था। शोईद खाँ खैरपुर ने पढ़ा बचाऊं माल ज़र इज़्ज़त को कैसे,लुटेरा रहनुमा है और मैं हूं। रईस तिलहरी ने पढ़ा वफाओं पर मेरी शक हो तो मुझको आज़मा लेना,

नमक खाकर किसी का मुझसे गददारी नहीं होती। इस दौरान कुछ मका़मी शायरों ने भी कलाम पेश किए। कार्यक्रम में काफी संख्या में लोग मुशायरा सुनने पहुंचे, सुबह 4 बजे तक मुशायरा चला। इस दौरान मुशायरे में

बशीरुददीन उर्फ आमिर मियाँ, रईस तिलहरी शोभित गुप्ता,पार्षद इरशाद हुसैन डबौरा, हितेश गुप्ता,सुल्तान अहमद, राशिद अली डबौरा

दर्द तिलहरी अदीब तिलहरी, लाडले मियां,मनोज प्रबल, अजमत खजांची आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम में एकता सोसल फेअरवेल सोसायटी के सभी मेम्बर को सम्मानित किया गया,आखिर में जर्रार तिलहरी और मुख्तार तिलहरी ने सभी का शुक्रिया अदा किया।

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