ग़ज़ल
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आग गुलशन में जो लगाते हैं,
वो इलेक्शन में जीत जाते हैं,,
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सब्ज़ बाग़ों को वो दिखाते हैं,
उनके वादे तो मुँह चिढ़ाते हैँ,,
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वो गिरा करके मुस्कुराते हैं,
हम गिरे लोगों को उठाते हैं,,
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हम तड़पते हैं आ भी जाओ अब,
गीत मेरे तुम्हे बुलाते हैं,,
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इक बड़ा इल्म भी है बेदारी,
सोए लोगों को हम जागते हैं,,
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आ के मिल लीजिएगा ख्वाबों में,
“ख्वाब मेरे अगर सजाते हैं”,,
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कर दिया पस्त जिन्हें हालात ने,
ऐसे लोगों को हम उठाते हैं,,
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“अक्स” से तुम मुतालबा न करो,
ज़ख्म को हम नहीं दिखते हैं,,
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✍️अक्स वारसी,,
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