अनुराग लक्ष्य, 2 फरवरी
सलीम बस्तवी अज़ीज़ी,
मुम्बई संवाददाता ।
किसी ने खुब कहा, फूल तो फूल हैं दामन भी खार थाम लेते हैं । लेकिन खुशबुओं से मुहब्बत करने वाले, इबादत और भक्ति भाव वाले इंसानों के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती, बल्कि महत्पूर्ण यह है कि वोह अपने आराध्य को क्या समर्पित कर रहे हैं।
जी हां, फूलों ने भक्ति, उपासना और इबादत में हमेशा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर चाहे वो मंहगा हो या सस्ता।
1975 से मुंबई के धारावी में फूलों की दुकान चलाने वाले आनंद शांता राम कदम बताते हैं कि जब मैं 1971 में मुंबई आया था तब की मुंबई और अबकी मुंबई में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। आगे बताते हैं कि पिछले 50 सालों से में यह फूलों का ही बिज़नेस कर रहा हूं। इस धंधे ने मुझे इस तरह लुभाया कि मैं इन्हीं फूलों की खुशबुओं का होकर ही रह गया।
बहुत ही संजीदगी से बताते हैं कि इन फूलों ने मुझे यह सिखाया और बताया कि फूलों का कोई धर्म और मज़हब नहीं होता, उन्हें मंदिर में चढ़ा दिया जाए या मजारों पर। उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। हां यह अलग बात है कि इस समय फूलों का बाज़ार गर्म है, ग्राहकों को थोड़ी असुविधा हो रही है। क्योंकि जब बाज़ार गर्म रहेगी तो हमें भी मजबूरन अपने भाव को ऊपर, नीचे करना ही पड़ता है। काश, यह इंसान फूलों की तरह अपना जीवन यापन करता तो समाज में नफरत नाम की कोई चीज़ नहीं होती, लोग फूलों की तरह ही सबसे प्यार करते।