कविता…
बहुत शर्मिंदा हूं…
ओ मेरी लाडो
मैं बहुत शर्मिंदा हूं
हर रंग में, हर रूप में
एक पिता के रूप में
तुझे दुलार ना दे सका
तुझे काबिल ना बना सका
एक भाई के रूप में
तेरी रक्षा ना कर सका
तेरा जीवन ना संवार सका
एक पति के रूप में
तुझे हक ना दे सका
तुझे सब कुछ ना दे सका
एक दोस्त के रूप में
तुझे भरोसा ना दे सका
तुझे साहसी ना बना सका
एक प्रेमी के रूप में
तेरी भावनाओं को ना जान सका
तेरे मन का दर्द ना पहचान सका
ओ मेरी चिरैया
हो सके तो मुझे माफ कर देना
हे निर्भया, मेरा इंसाफ कर देना…
– अमित बैजनाथ गर्ग
राज आंगन, ए-9, श्री राणी नगर, 30 नंबर टेंपो स्टैंड के पास,
पालड़ी मीणा, आगरा रोड, जयपुर, राजस्थान
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