दौलत मिली तो यक बयक लहज़ा बदल गया। – विनोद उपाध्याय हर्षित

ग़ज़ल

मेरी नहीं किसी की दिल ओ जान तुम भी हो ।
लगता है दिल लगा के परेशान तुम भी हो।।

हर सांस यही कहती है नादान तुम भी हो।
अपने किये पे आज पशेमान तुम भी हो।।

दौलत मिली तो यक बयक लहजा बदल गया।
लगता है उसकी जा़त से अनजान तुम भी हो।।

क्यू बार-बार तुम पे ही रूकती है ये नज़र।
शायद मेरी कहानी का उनवान तुम भी हो।।

धन का गुरुर अच्छा नहीं है जहांन में।
धरती पे चन्द रोज़ के मेहमान तुम भी हो।।

विनोद उपाध्याय हर्षित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *