दीप जलाना प्रियवर ऐसा,
स्नेह न होने देना कम।
दीप प्रज्वलित करना ऐसा,
शेष रहे न कोई तम।
तम छाया है धरा पर ऐसा,
जैसे अंबर में भी ग़म।
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….१
ध्यान रहे जब दीप दान हो,
कोना – २ रहे सघन।
हर आँगन ख़ुशियों से झूमें,
आँखें रहें न कोई नम।
हो प्रेम प्रवाहित अंतर्मन में,
लहरे ख़ुशियों का परचम।
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….२
दीप दान का पर्व विरल है,
और अल्प है ये जीवन।
प्रिये इसे तुम पल २ जीना,
रहे कभी न कोई ग़म।
बुझे दीप तुम पुनः जलाना,
और अमर कर देना तुम।
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….३
दीपदान कर प्रियवर भरसक,
पथ को नेक बनाना तुम।
मृदा भांड का दीप जलाकर,
भरसक ख़ुशी मनाना तुम।
पर एक दीप हर हृदय कुंज में,
जाकर अवश्य जलाना तुम।
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….४
है वेग वायु का अतीव प्रवल,
यह भूल न जाना तुम।
देख वायु का वेग हे प्रियवर,
हर इक दीप जलाना तुम।
हर इक झंझावातो से प्रियवर,
अपना दीप बचाना तुम।
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….५
कोशिश से हर लौ लहका कर,
हर इक धुँध मिटाना तुम।
बिछड़ गये जन मन में फिर से,
मेल मिलाप कराना तुम।
कोई कुछ भी करे भले पर,
यूँ ही दीप जलाना तुम॥
दीप जलाना प्रियवर ऐसा…….६
बाल कृष्ण मिश्र कृष्ण
ग्राम – कनेथू बुजुर्ग, ज़िला – बस्ती
उत्तर प्रदेश
१०.११.२०२३